राज्य नागरिकता किसे कहते हैं
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किसी भी राज्य में व्यक्ति की पहचान का सशक्त माध्यम नागरिक पहचान है जिसे औपचारिक रूप से नागरिकता की संज्ञा दी जाती है। आधुनिक राज्य की संरचना में नागरिक पहचान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहचान की तुलना में प्रभावशाली ढंग से स्थापित हुई है। नागरिकता राज्य और व्यक्ति के मध्य एक औपचारिक संबंध स्थापित करती है। यह औपचारिक संबंध ही राज्य और व्यक्ति दोनों को एक दूसरे के प्रति विधिक रूप से उत्तरदायी बनाता हैं।
अतः स्पष्ट है कि नागरिकता का मुख्य ज़ोर अधिकार और कर्त्तव्यों पर है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जो लोग बिना नागरिकता के जीवनयापन कर रहे हैं उनके सम्मुख न केवल राज्यविहीनता (Stateless) बल्कि अस्तित्व का भी संकट विद्यमान है। नागरिकता और राज्यविहीनता के मुद्दे को संबोधित करते हुए अपनाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के आलोक में भारत में नागरिकता संबंधी प्रावधान और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की समस्या का विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।