राज्य और समाज के बीच कोई चार अंतर
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राज्य और समाज के बीच अंतर
राज्य और समाज के बीच अंतर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. राज्य एक राजनीतिक संगठन है; यह राजनीतिक रूप से गठित एक समाज है। दूसरी ओर समाज एक सामाजिक संगठन है जिसमें सभी प्रकार के संघ (सामाजिक, आर्थिक धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक) निहित हैं। समाज राज्य से विशाल भी है और संकीर्ण भी। यह विशाल है जब इसका प्रयोग मानव जाति के संपूर्ण समुदाय को व्यक्त करने में किया जाता है; यह संकीर्ण है जब इसे किसी गांव के एक छोटे से समूह को वर्णित करने में किया जाता है।
2. उत्पत्ति के क्रम में समाज राज्य से पहले आता है। यह कहा जा सकता है कि समाज का जन्म मानव जीवन के उदय के साथ ही हुआ है। परंतु समाज के साथ ही राज्य का उदय नहीं हुआ; सामाजिक विकास के बाद के चरणों में इसका विकास हुआ। मनुष्य पहले एक सामाजिक प्राणी बना, इसके बाद राजनीतिक।
3. स्पष्टत: राज्य के पहले स्थान होने के कारण समाज एक प्राकृतिक और नैसर्गिक संस्था है। दूसरी ओर राज्य बनावटी और मानव निर्मित संस्था है, जिसे आवश्यकता पड़ने पर निर्मित किया गया है। यह भी एक कारण है कि हम राज्य को एक औपचारिक एवं वैधानिक संगठन की संरचना के रूप में पाते हैं। समाज भी संगठन है; संस्था है, परंतु राज्य की भांति औपचारिक नहीं है।
4. राज्य का अस्तित्व समाज के लिए ठीक उसी प्रकार है जैसे कोर्इ साधन उसके साध्य के लिए। अत: राज्य एक साधन है तथा समाज उसका साध्य। सदैव साधन का अस्तित्व साध्य के लिए है न कि साध्य का अस्तित्व साधन के लिए।
5. राज्य का एक प्रभुसत्ता होती है बिना प्रभुसत्ता के राज्य नहीं हो सकता। समाज की अपनी प्रभुसत्ता नहीं होती यह बिना संप्रभुता के होता है। संप्रभु होने के कारण राज्य अपनी सीमाओं के अंदर सभी संगठनों, संघ और व्यक्तियों के ऊपर एक शक्ति रखता है; यह संप्रभुता ही राज्य को एक विशेष तथा स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान करती है।
6. राज्य का एक निश्चित भू-भाग होना चाहिए आप पढ़ चुके हैं कि निश्िचत भु-भाग राज्य का एक आवश्यक घटक है। इस प्रकार राज्य तब तक एक क्षेत्रीय संगठन है, जब तक कि यह एक निश्चित क्षेत्र में हो। इसकी क्षेत्रीय सीमाएँ निश्चित हों और स्थायी हों। समाज का भी एक क्षेत्र होता है परंतु वह स्थायी नहीं होता। इसका कार्य-क्षेत्र विस्तृत भी हो सकता है और सीमित भी। उदाहरण के लिए, इस्लाम समाज राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर तक फैला हुआ है। इसी प्रकार अन्य समाज भी।
7. राज्य के आचार के कुछ सामान्य नियम होते हैं जिन्हें कानून कहते हैं। समाज में भी आचरण के कुछ नियम होते हैं जिन्हें कर्मकाण्ड, मापदंड या आदतें आदि कहते हैं। राज्य के नियम लिखित, निश्चित और स्पष्ट होते हैं समाज के नियम अलिखित, अनिश्चित और अस्पष्ट होते हैं।
8. राज्य के नियम बाध्यकारी होते हैं। इन नियमों का उल्लंधन करने पर शारीरिक या अन्य या दोनों तरह की सजाएं दी जा सकती हैं। जबकि सामाजिक नियमों के उल्लंघन से सामाजिक बहिष्कार जैसी सजा दी जा सकती है। हम कह सकते हैं कि राज्य का क्षेत्र वह क्षेत्र है जहां आज्ञा के उल्लंघन के कारण राज्य कार्रवार्इ करता है। राज्य को बल प्रयोग का अधिकार प्राप्त है। वहीं दूसरी ओर समाज का क्षेत्र ऐच्छिक सहयोग का क्षेत्र है तथा जिसकी शक्ति सद्भाव है एवं इसकी कार्यविधि लचीली है।