राज्यपाल को केंद्र का एजेंट क्यों कहते हैं
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बीते दिनों एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा था कि “राज्यपाल राज्य का संरक्षक और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है और देश के संघात्मक ढाँचे में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।” हालाँकि विगत कुछ दिनों में महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई ने देश में राज्यपाल के पद को जाँच के दायरे में ला दिया है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री द्वारा ली गई शपथ और बहुमत सिद्ध करने से पूर्व इस्तीफे के पूरे घटनाक्रम में राजभवन (राज्यपाल का आवास) विवाद का केंद्र बना रहा। गौरतलब है कि इस वर्ष के शुरू में कर्नाटक विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद कर्नाटक के राज्यपाल द्वारा की गई कार्रवाई को भी विवेकाधीन शक्तियों के पहलुओं पर न्यायिक जाँच के दायरे में माना गया था। ऐसी स्थिति में देश के अंतर्गत राज्यपाल के पद और उसकी प्रासंगिकता पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है।
भारत में राज्यपाल
जिस प्रकार केंद्र में राष्ट्र का प्रमुख राष्ट्रपति होता है उसी प्रकार राज्यों में राज्य का प्रमुख राज्यपाल होता है।
उल्लेखनीय है कि राज्यपाल राज्य का औपचारिक प्रमुख होता है और राज्य की सभी कार्यवाहियाँ उसी के नाम पर की जाती हैं।
प्रत्येक राज्य का राज्यपाल देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है एवं यह राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से कार्य करता है।
सामान्यतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परंतु वह इस अवधि से पूर्व भी राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर सेवानिवृत्त हो सकता है।
गौरतलब है कि राज्यपाल का कार्यालय पिछले पाँच दशकों से सबसे विवादास्पद रहा है। यह विवाद 1959 में राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक मतभेद के कारण केरल के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा केरल सरकार की बर्खास्तगी से शुरू हुआ था।
इस विवाद ने 1967 में उत्तरी राज्यों में कई गैर-कांग्रेसी सरकारों के उभरने के बाद सबसे खराब रूप धारण कर लिया।