राज्यसभा के कार्यों का वर्णन करो।
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☑ राज्यसभा मुख्य रूप से संसद में भारत के राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। लोकसभा द्वारा शुरू किए गए कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें बदलने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्यसभा भी कानून शुरू कर सकती है। कानून बनने के लिए राज्यसभा से पारित होने के लिए एक विधेयक की आवश्यकता होती है।
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राज्यसभा की रचना लोकसभा के सहयोगी और सहायक सदन के रूप में की गयी है। राज्यसभा में कार्य और शक्तियों का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है:
(1) विधायी शक्तियां:-लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा भी विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य करती है। संविधान के द्वारा अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को बराबर शक्तियां प्रदान की गई हैं। अवित्तीय विधेयक दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पहले प्रस्तावित किया जा सकता है और दोनों सदनों से पारित होने के बाद ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाता है। व्यवहार में स्थिति यह है कि सामान्यतया सभी महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं राज्यसभा में नहीं।
अनुच्छेद 108 के अनुसार किसी साधारण विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो उस विधेयक पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विचार किया जायेगा और विधेयक के भाग्य का निर्णय बहुमत के आधार पर होगा।
(2) संविधान संशोधन की शक्ति:-संविधान संशोधन के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्राप्त है। संशोधन प्रस्ताव तभी स्वीकृत समझा जाएगा, जबकि संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया जाय। संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में असहमति होने पर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव गिर जायगा। संविधान संशोधन के प्रसंग में राज्यसभा की शक्ति का परिचय इस बात से मिलता है कि 45वां संविधान संशोधन विधेयक (44वां संवैधानिक संशोधन) उसी रूप में पारित हुआ, जिस रूप में राज्यसभा चाहती थी। 1989 में 64वां और 65वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त न होने के कारण समाप्त हो गये।
(3) वित्तीय शक्ति:- राज्यसभा को कुछ वित्तीय शक्ति प्राप्त है यद्यपि इस सम्बन्ध में संविधान के द्वारा राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में निर्बल स्थिति प्रदान की गयी है। संविधान के अनुसार वित्त विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जायेंगे। लोकसभा से स्वीकृत होने पर वित्त विधेयक राज्यसभा में भेजे जायेंगे, जिसके द्वारा अधिक से 14 अधिक दिन तक इस विधेयक पर विचार किया जा सकेगा। राज्यसभा वित्त विधेयक के सम्बन्ध में अपने सुझाव लोकसभा को दे सकती है, लेकिन यह लोकसभा की इच्छा पर निर्भर है कि उन प्रस्तावों को माने या न माने।