Hindi, asked by dp773589, 1 month ago

राजनीतिक चिंतन में मार्क्स के योगदान की समीक्षा कीजिए​

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Answered by Rhyon25676
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Answer:

अपनी वैचारिक आस्था से प्रतिबद्ध मार्क्स के विचारों में ईमानदारी है. उसका आग्रह सामाजिक–राजनीतिक क्रांति समाज में आमूल परिवर्तन के प्रति था. अपने विचारों के बल पर उसने समाज के बड़े वर्ग को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है. इसलिए किसी के लिए भी उसकी उपेक्षा कर पाना असंभव है.

Answered by madeducators3
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राजनीतिक चिंतन में मार्क्स के योगदान की समीक्षा

Explanation:

  • मार्क्स के चिंतन का क्षेत्र व्यापक था. हालांकि उसका मूल चिंतन अर्थशास्त्र और राजनीति से संबंधित है. उसकी सबसे महान कृति ‘पूंजी’ अर्थशास्त्र जैसे निष्ठुर माने जाने वाले विषय की भी मानवतावादी दृष्टि से विवेचना करती है.
  • पूंजीवाद की तार्किक आलोचना करते हुए वह उसे कठघरे में ले जाती है. लेकिन मार्क्स का बुद्धि–विस्तार वहीं तक सीमित नहीं है. अर्थशास्त्र और राजनीति के अतिरिक्त उसने दर्शन, इतिहास, समाज आदि पर गंभीर लेखन किया था.
  • वाल्तेयर, रूसो, प्रूधों, हीगेल, रिकार्डो आदि से प्रभावित मार्क्स द्वंद्ववाद का समर्थक था. चूंकि द्वंद्व के लिए दो पक्षों का आमने–सामने होना आवश्यक है, इसलिए उसने सृष्टि में स्थूल के अस्तित्व को स्वीकार किया और तदनुसार भौतिकवादी यथार्थ को प्रमुखता दी.
  • मार्क्स का दर्शन–संबंधी ज्ञान भी अद्भुत और श्लाघनीय था. यदि वह किसी कारण राजनीति और अर्थशास्त्र के अध्ययन से बचता तो निश्चय ही दर्शन के क्षेत्र में अपनी खास पहचान बनाता. तब उसकी चिंतनधारा हीगेल के दर्शन की कुछ और गांठें खोलती.
  • उसको कुछ नया विस्तार देती. मार्क्स के दार्शनिक विचारों की झलक, उसकी ज्ञान–मीमांसा मुख्यतः ‘आ॓न दि ज्यूइश क्वश्चन’, ‘थीसिस आ॓न फायरबाख’ आदि में देखने को मिलती है.
  • उसने ये पुस्तकें क्रमशः ब्रूनो बायर और फायरबाख की पुस्तकों की आलोचना करते हुए रची थीं. ये दोनों विद्वान भी हीगेल के अनुयायी थे. दोनों ने अपनी–अपनी तरह से हीगेल के दर्शन को विस्तार दिया था.
  • हीगेल से ही प्रेरित मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवाद अपने आप में एक विलक्षण स्थापना थी, जिसने उसको भौतिकवादी दार्शनिकों की पहली कतार में सम्मिलित कर दिया था
  • अपनी वैचारिक आस्था से प्रतिबद्ध मार्क्स के विचारों में ईमानदारी है. उसका आग्रह सामाजिक–राजनीतिक क्रांति समाज में आमूल परिवर्तन के प्रति था.
  • अपने विचारों के बल पर उसने समाज के बड़े वर्ग को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है. इसलिए किसी के लिए भी उसकी उपेक्षा कर पाना असंभव है.
  • उसके दर्शन–संबंधी विचारों की सीमा और उनके विरोधाभास के बावजूद उनमें इतना कुछ है, जिसके कारण वह शताब्दियों से विद्वानों को प्रभावित करता आया है.
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