राजनैतिक क्षेत्र में मुद्रा का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
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मुद्रा (currency, करन्सी) पैसे या धन के उस रूप को कहते हैं जिस से दैनिक जीवन में क्रय और विक्रय होती है। इसमें सिक्के और काग़ज़ के नोट दोनों आते हैं। आमतौर से किसी देश में प्रयोग की जाने वाली मुद्रा उस देश की सरकारी व्यवस्था द्वारा बनाई जाती है। मसलन भारत में रुपया व पैसा मुद्रा है।
मुद्रा के बारे में हम उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के आधार पर बात कर सकते हैं। सामान्यतः हम मुद्रा के कार्यो में विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापक तथा धन के संचय तथा स्थगित भुगतानों के मान आदि को शामिल करते है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की परिभाषा उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के आधार पर दी है। मुद्रा में सामान्य स्वीकृति के गुण का होना बहुत जरूरी है यदि किसी वस्तु में सामान्य स्वीकार होने की विशेषता नहीं है तो उस ‘वस्तु’ को मुद्रा नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार, मुद्रा से अभिप्राय कोई भी वह वस्तु है जो सामान्य रुप से विनियम के माध्यम, मूल्य के माप, धन के संचय तथा ऋणों के भुगतान के रुप में स्वीकार की जा सकती है।
परिभाषा
मुद्रा की कोई भी ऐसी परिभाषा नहीं है जो सर्वमान्य हो। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की अलग-अलग परिभाषाएँ दी है। प्रो. जॉनसन ने मुद्रा की परिभाषाओं की चार अलग-अलग भागों में अपनी पुस्तक 'एस्सेज ऑन मॉनेतरी इकनॉमिक्स' ( 'Esays on Monetary Economics') में बताया है जो इस प्रकार है :
परम्परागत दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण में मुद्रा की परिभाषाएँ उसके द्वारा किये गये कार्यों के आधार पर दी गई है।
1. क्राउथर के अनुसार, "मुद्रा वह चीज है जो विनिमय के माध्यम के रूप में सामान्यतया स्वीकार की जाती है और साथ में मुद्रा के माप तथा मुद्रा के संग्रह का भी कार्य करे।"
2. हार्टले विदर्स तथा वाकर के अनुसार, ”मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।“
3. जे. एम. केन्ज के अनुसार, "मुद्रा में उन सब चीजों को शामिल किया जाता है जो बिना किसी प्रकार के सन्देह अथवा विशेष जांच के वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने और खर्च को चुकाने के साधन के रूप में साधारणतः प्रयोग में लाई जाती है।"
मुद्रा के परम्परावादी दृष्टिकोण में हम समय जमा को मुद्रा में शामिल नहीं करते, मुद्रा में परम्परावादी अर्थशास्त्री केवल नोट सिक्के तथा बैकों में मांग जमा को ही सम्मिलित करते है।
शिकागो विचारधारा
शिकागो दृष्टिकोण में मिल्टन फ्रीडमैन का ही नाम सामने आता है। शिकागो दृष्टिकोण परम्परागत दृष्टिकोण से बहुत अधिक विस्तृत है। इस दृष्टिकोण के अनुसार मुद्रा में समय जमा को भी शामिल किया जाता है।
मुद्रा = नोट + सिक्के + बैंको में मांग जमा + समय जमा
परम्परागत दृष्टिकोण में मुद्रा के संचय कार्य को बिल्कुल भी ध्यान में नही रखा। वे केवल मुद्रा के विनिमय कार्य के बारे में बात करते है जबकि शिकागो विचारधारा में मुद्रा के संचय कार्य को अधिक महत्व दिया गया है।
गुरले तथा शॉ दृष्टिकोण
गुरले तथा शॉ ने अपनी पुस्तक 'Money in a Theory of Finance' में मुद्रा के बारे में बताया है। गुरले एवं शॉ ने मुद्रा में उसके सभी निकट प्रतिस्थापनों को शामिल किया है। यह दृष्टिकोण शिकागो दृष्टिकोण से भी विस्तृत है इस दृष्टिकोण में मुद्रा में बचत बैंक जमा, शेयर, बॉण्ड तथा साख पत्र आदि को शामिल करते है।
मुद्रा = नोट + सिक्के + मांग जमा + समय जमा + बचत बैंक जमा + शेयर + बाण्ड + साख पत्र
रैडक्लिफ दृष्टिकोण
केन्द्रीय बैंकिग दृष्टिकोण को ही हम रैडक्लिफ दृष्टिकोण कहते है। इस दृष्टिकोण में हम मुद्रा की विभिन्न एजेन्सियों द्वारा दी गई साख को शामिल करते है। केन्द्रीय बैकिग दृष्टिकोण में मुद्रा में नोट, सिक्के, मांग जमा, समय जमा, गैर बैंकिग वित्तीय मध्यस्थों तथा असगठित संस्थाओं द्वारा दी गई साख को शामिल करते है।
मुद्रा = नोट + सिक्के + मांग जमा + समय जमा + बचत बैंक जमा + शेयर बाण्ड + असंगाठित क्षेत्रों द्वारा जारी की गई साख
इरंविग फिशर ने सन् 1911 में अपनी पुस्तक The Purchasing Power of Money में मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मुद्र की पूर्ति तथा कीमत स्तर के बीच प्रत्यक्ष तथा आनुपातिक सम्बन्ध होता है। अगर मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है तो कीमत स्तर में भी वृद्धि होती है और अगर मुद्रा की पूर्ति कम होती है तो कीमत स्तर भी कम होता है फिशर ने मुद्रा की पूर्ति को सक्रिय तथा कीमत स्तर के निर्धारण में मुद्रा की मांग को अधिक महत्वपूर्ण माना है। परम्परावादी अर्थशास्त्री मुद्रा के केवल विनिमय माध्यम की बात करते है तथा कैम्ब्रिज अर्थशास्त्रियों ने बताया कि मुद्रा को संचय भी कर सकते हैं। केन्ज ने बताया कि मुद्रा की मात्रा तथा कीमत स्तर के बीच अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन होने के फलस्वरूप सबसे पहले ब्याज की दर में परिवर्तन होता है और ब्याज की दर में परिवर्तन होने से निवेश प्रभावित होता है और फिर आय, उत्पादन, रोजगार बढ़ता है। केन्ज के अनुसार पूर्ण रोजगार से पहले मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर उत्पादन तथा कीमतें दोनों बढ़ती है परन्तु पूर्ण रोजगार के बाद मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर केवल कीमतें हीं बढ़ती है।
== मुद्रा के कार्य ==का प्रकार आज के समय में बिना मुद्रा के हम अपना एक दिन भी नहीं गुजार सकते है क्योंकि मुद्रा के द्वारा किये जाने वाले कार्यों के द्वारा हम अपने जीवन को सुव्यवस्थित व्यतीत करते है। मानव सभ्यता के विकास में मुद्रा के कार्यों का बहुत अधिक महत्व है। प्रो. किनले ने मुद्रा के कार्यों को तीन भागों में बांटा है-
मुद्रा के प्राथमिक कार्य
प्राथमिक कार्यां में मुद्रा के उन सब कार्यों को शामिल करते है जो प्रत्येक देश में प्रत्येक समय मुद्रा द्वारा किये जाते हैं इसमें केवल दो कार्यों को शामिल किया जाता है।
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