राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे।
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उत्तर :
राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर निम्न कारणों से बँटे हुए थे :
(क) कांग्रेस लंबे समय से पिछड़े वर्गों की अपेक्षा करती आ रही थी । उनका मानना था कि उनका सामाजिक पिछड़ापन केवल राजनीतिक सशक्तिकरण से दूर हो सकता है। इसलिए वह अपने लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र चाहते थे। उनकी मांग का नेतृत्व डॉक्टर अंबेडकर कर रहे थे ।
मुस्लिम नेता भी मुसलमानों के लिए अलग चुनाव क्षेत्र चाहते थे। इसका कारण यह था कि मुसलमान अल्पसंख्यक थे । वे स्वयं को को कांग्रेस से कटा हुआ महसूस कर रहे थे क्योंकि 1920 के दशक मैं कांग्रेस हिंदू महासभा जैसे धार्मिक राष्ट्रवादी संगठनों के करीब देखने लगी थी। इसके अतिरिक्त मुसलमान यह सोचते थे कि हिंदुओं का वर्चस्व स्थापित होने पर उनकी संस्कृति और अलग पहचान समाप्त हो जाएगी। उनकी मांग का नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे।
(ख) कांग्रेस नेता, विशेषकर महात्मा गांधी पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाने के विरुद्ध थे। उनका मानना था कि ऐसा होने पर भारत में सामाजिक एकीकरण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी । परिणामस्वरुप राष्ट्रीय आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा और देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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Explanation:
समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।