Political Science, asked by tiwarideepak6070, 5 months ago

राजनीतिक थियोरी का पुनरुत्थान १५० शब्दो मे उत्तर​

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Answered by Payalchelani
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आधुनिक समाज में सबसे अधिक विवाद के विषय हैं- राजनीतिक चिन्तन का अस्तित्व, वर्तमान स्तर और भविष्य । इस संबंध में राजनीतिक विद्वान दो गुटो में विभाजित हैं । प्रथम गुट के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का ह्रास हो चुका है या यह पतन की ओर उन्मुख हो रहा है या मर चुका है ।

इस गुट के प्रमुख समर्थकों में डेविड ईस्टन, एल्मोड कॉबन, सीमोर लिपरेट, लासवैल आदि प्रमुख हैं । द्वितीय गुट के विद्वानों के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत अपने विकास की चरम सीमा पर है । इस गुट के समर्थकों में दांते जर्मीनो, लियो स्ट्रास, आदि हैं; राजनीतिक सिद्धांत के विषय में यह विवाद मुख्य रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रकाश में आया ।

इस चरण में एक आश्चर्यजनक घटना यह हुई कि अमरीकी राजनीति वैज्ञानिकों ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन एवं निधन का वर्णन किया । डेविड ईस्टन तथा एल्फ्रेड कॉबन ने आग्रह किया कि राजनीतिक सिद्धांत का पतन हो चुका है तथा हेरॉल्ड लासवैल तथा रॉर्बट डहल ने तो इसके निधन तक को स्वीकार कर लिया है ।

पहले गुट के राजनीतिक विचारकों में भी कतिपय मतभेद हैं, कुछ के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत के हास का उत्तरदायित्व स्वयं राजनीतिक विचारकों पर है अर्थात् वे स्वयं ही राजनीतिक सिद्धांत के हास के कारण हैं, पर कॉबन के अनुसार राजनीतिक चितंन का ह्रास स्वाभाविक है । उसने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा है कि राजनीतिक चिंतन मूल्य प्रधान है । अतः नीतिशास्त्र के हार के साथ राजनीतिक चिंतन का ह्रास स्वाभाविक है ।

कुछ अन्य विचारकों के अनुसार वर्तमान युग में राजनीतिक चिंतन का हारन नहीं हुआ है वरन् इसका मात्र बाह्य रूप परिवर्तित हुआ है । जॉन प्लेमेनाज ने यह सुझाव दिया है कि – ”न तो व्यावहारिक स्तर पर और न ही दार्शनिक स्तर पर इसकी जीवित अवस्था में कोई संशय करना चाहिए ।”

मोरिस दुवर्जर ने राजनीतिक दार्शनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि – ”वे न केवल एक ओर अपने अनुभवों के आधार पर इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं, वरन् दूसरी ओर वे अपनी व्यक्तिगत या सामूहिक राय को भी इतिहास पर लाद देते हैं ।”

ईसाह बर्लिन ने राजनीतिक दर्शन की भूत व वर्तमान अवस्था का अध्ययन कर यह पूर्व कथन किया है कि यद्यपि राजनीतिक दर्शन तो कभी भी समाप्त नहीं होगा तथापि संभवतः समाज मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र इत्यादि ऐसे अनेक तर्क प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं कि उन्होंने इसके काल्पनिक जगत को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला है ।

राजनीतिक सिद्धांत की अवनति के पक्ष में जो राजनीतिक विद्वान हैं उनमें डेविड ईस्टन और एल्मोड कॉबन प्रमुख हैं ।

राजनीतिक सिद्धांत के पतन के बारे में उनके द्वारा पेश किए गए तर्क निम्न प्रकार से उल्लेखित किए जा सकते हैं:

1950 के दशक में अमेरिकी राजनीति-वैज्ञानिक डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक ‘The Political System: An Enquiry into the State of Political Science’ के अंतर्गत यह विचार व्यक्त किया कि परंपरागत राजनीति-सिद्धांत कोरे चिंतन-मनन पर आधारित है; उसमें राजनीतिक यथार्थ के गहन निरीक्षण का नितांत अभाव है, अतः राजनीति-सिद्धांत को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करने के लिए इसे चिरसम्मत ग्रंथों और राजनीतिक विचारों के इतिहास की परंपरा से मुक्त कराना जरूरी है ।

ईस्टन ने लिखा कि परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत उस उथल-पुथल की उपज है जो बीते युगों के इतिहास की विशेषता रही है । प्लेटो-पूर्व यूनान, 15वीं सदी के इटली, 16वीं-17वीं सदी के इंग्लैण्ड और 18वीं सदी के फ्रांस में ऐसी उथल-पुथल के कारण ही राजनीतिक-चिंतन को पनपने का अवसर मिला था । वर्तमान समय में उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है ।

ईस्टन का यह भी कहना है कि कार्ल मीकर्न और जे.एस. मिल के बाद कोई महान दार्शनिक पैदा नहीं हुआ; अतः पराश्रितों की तरह एक शताब्दी पुराने विचारों से चिपके रहने से क्या फायदा? ईस्टन ने तर्क दिया कि अर्थ अर्थशास्त्रवेत्ताओं और समाजवैज्ञानिकों ने तो मनुष्यों के यथार्थ व्यवहार का व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया हैं परंतु राजनीति-वैज्ञानिक इस मामले में पिछड़े रहे हैं ।

इन्होंने फासीवाद और साम्यवाद के उदय और अस्तित्व की व्याख्या देने के लिए उपयुक्त अनुसंधान-उपकरण भी विकसित नहीं किए हैं । फिर, दूसरे विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान अर्थशास्त्रवेत्ताओं, समाजवैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने तो निर्णयन-प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई है परंतु राजनीति- वैज्ञानिकों को किसी ने पूछा ही नहीं ।

अतः ईस्टन ने राजनीति-वैज्ञानिकों को यह सलाह दी कि उन्हें अन्य समाजशास्त्रियों के साथ मिलकर एक ‘व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान’ (Behavioural Political) का निर्माण करना चाहिए ताकि उन्हें भी निर्णयन-प्रक्रिया में अपना है उपयुक्त स्थान प्राप्त हो सके ।

ईस्टन ने तर्क दिया कि परंपरागत राजनीति-सिद्धांत के अंतर्गत ‘मूल्यों’ के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया है परंतु समकालीन राजनीति विज्ञान में मूल्यों के विश्लेषण की कोई जरूरत नहीं है । मूल्य तो व्यक्तिगत या समूहगत अधिमान्यताओं (Individual or Group Preferences) का संकेत देते हैं जो किन्हीं विशेष सामाजिक परिस्थितियों में जन्म लेती हैं और उन्हीं परिस्थितियों के साथ जुड़ी होती हैं ।

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