राजनैतिक दखल शिक्षा की गुणवत्ता में बाधक नही है
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शिक्षक समाज की सर्वाधिक संवदेनशील इकाई है. शिक्षक अपना काम ठीक तरह से नहीं करते- यह आरोप तो सर्वत्र लगाया जाता है. लेकिन यह विचार कोई नहीं करता कि उसे पढ़ाने क्यों नहीं दिया जाता? आए दिन गैर-शैक्षिक कार्यों में इस्तेमाल करता प्रशासन, शिक्षकों की शैक्षिक सोच को, शैक्षिक कार्यक्रमों को पूरी तरह ध्वस्त कर देता है. बच्चों को पढ़ाना-सिखाना सरल नहीं होता और न ही बच्चे फाईल होते हैं. प्रशासनिक कार्यालय और अधिकारीगण शिक्षा और शिक्षकों की लगातार उपेक्षा करते हैं. उन्हें काम भी नहीं करने देते. इसी कारण स्कूली शिक्षा में अपेक्षित सुधार सम्भव नहीं हो पा रहा है.
शिक्षा में सुधार के लिए क्या करें
स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए हमें स्कूलों के बारे में अपनी परम्परागत राय को बदलना होगा. अभी स्कूलों को कार्यालय समझकर, शिक्षकों को प्रतिदिन अनेक प्रकार की डाक बनाने और आँकड़े देने के लिए मजबूर किया जाता है. इससे बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान होता रहता है. बच्चे अपने शिक्षकों से सतत् जुड़े रहना चाहते हैं, विशेषकर प्राथमिक स्तर पर. अत: स्कूलों को कार्यालयीन कामकाज से वास्तव में मुक्त कर प्रभावी शिक्षण संस्थान बनाया जाना चाहिए.
अभी अधिकांश स्कूल अन्य सरकारी कार्यालयों की तर्ज पर 9 से 4 की अवधि में ही खुलते हैं. इस कारण से रोजगार में जुटे परिवारों के बच्चों के लिए वे अनुपयोगी सिद्ध हो रहे हैं. स्कूल की समयावधि सरकारी नियंत्रण में होने के कारण बच्चों की उपस्थिति और सीखने का समय कमतर होता जा रहा है. स्कूली उम्र पार कर चुके किशोरों, युवाओं, महिलाओं और कामकाजी लोगों के लिए स्कूल के दरवाजे एक तरह से बन्द ही हैं. विद्यालय समाज की लघुतम इकाई के रूप में "सामाजिक शिक्षण केन्द्र" के रूप में कार्य कर सकते हैं. इस परिकल्पना को साकार करने की दिशा में पहल किए जाने का दायित्व स्थानीय " शिक्षक संघ" पूरा कर सकते हैं. अगर समाज की जरूरत के चलते चिकित्सालय और थाने दिन-रात खुले रह सकते हैं, तो यह भी उतना ही आवश्यक है कि विद्यालय कम-से-कम 10-12 घण्टे जरूर खुलें.
शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक हो
शैक्षणिक सुधार में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है. पाठयपुस्तकों और पाठयक्रम के अनुरूप प्रभावी शिक्षण, शिक्षकों की योग्यता, सक्रियता और पढ़ाने के कौशल पर निर्भर है. एक शिक्षक, एक साथ कितनी कक्षाओं के कितने बच्चों को भली-भाँति पढ़ा सकेगा, इस बारे में गम्भीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है.
आदर्श रूप में एक शिक्षक अधिकतम 20 बच्चों को ही ठीक प्रकार पढ़ा सकता है. वह भी तब, जब वे भी एक समान स्तर के हों. अभी व्यवस्था यह है कि एक शिक्षक 40 बच्चों को (और वे भी अलग-अलग स्तरों के हैं) पढ़ाएगा. अनेक स्कूलों में तो 70-80 से भी अधिक बच्चों को पढ़ाना पड़ रहा है. ऐसे में शिक्षक मात्र बच्चों को घेरकर ही रख पाते हैं पढ़ाई तो सम्भव ही नहीं. शिक्षक बच्चों को पढ़ा भी पाएँ, इस हेतु शिक्षक-छात्र अनुपात को व्यवहारिक बनाना होगा.