राजनीतिक दखल शैक्षणिक गुणवत्ता में बाधक है' is par debate ka matter against the motion
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Namaste unka nam lohiath low hip nafiha
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राजनैतिक दखल से शिक्षा की गुणवत्ता में बाधक है ये कथन एकदम सत्य है। जो भी सरकार आती है वो शिक्षा में अपनी सुविधा के अनुसार परिवर्तन करती रहती है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता एक-समान नही रह पाती। हर राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा होती है। जब वो दल सरकार बनाकर सत्ता संभालता है तो वो अपनी पूर्ववर्ती सरकार की विचारधारा को नकारते हुये उसकी सारी योजनाओं को निरस्त करने का प्रयत्न करता है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नही है।
हर राजनीतिक दल के अपने-अपने आदर्श होते हैं। हमारे देश में लगभग सभी दलों ने अपने-अपने महापुरुष सेट कर रखे हैं और सभी दल अपने उस महापुरुष की विचारधारा पर चलने का प्रपंच रचते हैं। जो दल सत्ता में होता वो अपने महापुरुष को ही महिमामंडित करने की कोशिश करता है। शिक्षा का क्षेत्र किसी दल की विचारधारा को आगे बढ़ाने का सबसे आसान हथियार बन गया है।
पाठ्य-पुस्तकों में अपनी विचारधारा के अनुसार तथ्यों से छेड़छाड़ किया जाता है। जो दल सत्ता है वो अपने अपनी विचारधार और अपने आदर्श पुरुष को महिमा मंडित करने के लिये पाठ्य-पुस्तकों में पाठ्य पुस्तकों में छेड़छाड़ करते हैं। पूर्ववर्ती सरकार जो किसी दूसरी दल की थी, उसके दल की विचारधारा वाले महापुरुषों के बारे जो कुछ पाठ्यपुस्तकों में होता है उन्हे हटा दिया जाता है या लगभग उसमें छंटनी कर दी जाती है।
उदाहरण के लिये बीजेपी के सत्ता मे आने पर शिक्षा के भगवाकरण के आरोप लगते रहते हैं। जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी तो नेहरु-गांधी परिवार के व्यक्तियों का महिमामंडन करने में लगी रही और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के योगदान को भुला दिया।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि प्रत्येक सत्ताधारी दल अपनी विचारधारा के अनुसार शिक्षा को चलाना चाहता है जोकि उचित नही है। हम सबको एक सर्वमान्य विचारधारा के अनुसार शिक्षा का विकास करना चाहिये। सरकारें बदलती रहें पर उनकी विचारधारा के अनुसार शिक्षा में बदलाव न हो और एक अपरिवर्तनीय व्यवस्था कायम रहे। तभी शिक्षा का कल्याण हो सकता है वरना शिक्षा के स्तर में गिरावट निश्चित है। फिर तो शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी ही।