राजनीतिक दल की क्या-क्या चुनौतियां कार्य क्या है
Answers
✿ राजनैतिक दल लोगों का एक ऐसा संगठित गुट होता है जिसके सदस्य किसी साँझी विचारधारा में विश्वास रखते हैं या समान राजनैतिक दृष्टिकोण रखते हैं।
✿ यह दल चुनावों में उम्मीदवार उतारते हैं और उन्हें निर्वाचित करवा कर दल के कार्यक्रम लागू करवाने क प्रयास करते हैं।
✿ राजनैतिक दलों के सिद्धान्त या लक्ष्य (विज़न) प्राय: लिखित दस्तावेज़ के रूप में होता है।
✿ राजनीतिक दल ऐसा संगठन है जिसका प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व की प्राप्ति होता है। इसमें दल का नेता संगठित अल्पतंत्र (कार्यकारिणी) द्वारा शक्ति हथियाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करता है।
✿ सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों को लेकर उप संरचनाएं एवं समितियां होती है, जो भौगोलिक सीमाओं, सामाजिक समग्रताओं के आधार पर होती हैं। दल में कई परस्पर विरोधी समूह किसी उद्देश्य तथा राजनीतिक विचारधारा को लेकर साथ जुड़े हुए रहते हैं।
✿ राजनीतिक शक्ति का आधार ‘वोट’ है अर्थात् सरकार का निर्धारण मतदान प्रणाली से किया जाता है।
1. गलतियों के लिए राजनीतिक दलों पर दोषारोपण-
✿ लोकतान्त्रिकशासन-व्यवस्था में जनता का पूर्ण विश्वास राजनीतिक दलों में होता है।लोकतान्त्रिक राजनीति का संचालन राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। अतशासन की गलतियों के कारण जनता को जो कठिनाई होती है, उसका दोषारोपणराजनीतिक दलों के ऊपर किया जाता है। सामान्य जनता की अप्रसन्नता तथाआलोचना राजनीतिक दलों के काम-काज के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित होती है।
2. आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव–
✿ यद्यपि राजनीतिक दल लोकतन्त्रकी दुहाई देते हैं, परन्तु उनमें आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव देखने को मिलता है।राजनीतिक दलों के संगठनात्मक चुनाव नियमित रूप से नहीं होते हैं। दल कीसम्पूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाती है। दलों के पास अपनेसदस्यों की सूची भी नहीं होती है।
3. साधारण सदस्यों की उपेक्षा–
✿ यह भी देखा गया है कि दलों मेंसाधारण सदस्यों की उपेक्षा की जाती है, उसे दल की नीतियों के निर्माण मेंसहभागिता प्रदान नहीं की जाती है, वह दल के कार्यक्रमों के बारे में अनभिज्ञ बनारहता है। जो सदस्य दल की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें दल की प्राथमिकसदस्यता से वंचित कर दिया जाता है।
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गलतियों के लिए राजनीतिक दलों पर दोषारोपण-
लोकतान्त्रिकशासन-व्यवस्था में जनता का पूर्ण विश्वास राजनीतिक दलों में होता है लोकतान्त्रिक राजनीति का संचालन राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। अतशासन की गलतियों के कारण जनता को जो कठिनाई होती है, उसका दोषारोपणराजनीतिक दलों के ऊपर किया जाता है। सामान्य जनता की अप्रसन्नता तथा आलोचना राजनीतिक दलों के काम-काज के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित होतीहै।
आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव–
यद्यपि राजनीतिक दल लोकतन्त्रकी दुहाई देते हैं, परन्तु उनमें आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव देखने को मिलता है।राजनीतिक दलों के संगठनात्मक चुनाव नियमित रूप से नहीं होते हैं। दल कीसम्पूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाती है। दलों के पास अपनेसदस्यों की सूची भी नहीं होती है।
साधारण सदस्यों की उपेक्षा–
यह भी देखा गया है कि दलों मेंसाधारण सदस्यों की उपेक्षा की जाती है, उसे दल की नीतियों के निर्माण मेंसहभागिता प्रदान नहीं की जाती है, वह दल के कार्यक्रमों के बारे में अनभिज्ञ बनारहता है। जो सदस्य दल की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें दल की प्राथमिकसदस्यता से वंचित कर दिया जाता है।
वंशवादी उत्तराधिकार-
भारत सहित विश्व के अनेक राष्ट्रों में यहदेखा गया है कि दलों में भी वंशवादी उत्तराधिकार की परम्परा पड़ गई है। कांग्रेसकी बागडोर पहले पं० नेहरू के हाथ में थी, उनके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी,राजीव गांधी, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के हाथों रही।
धन की महत्ता-
वर्तमान में राजनीतिक दलों में भी धन की महत्ताबढ़ती जा रही है। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों कोआर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। सभी राजनीतिक दल चुनावों में विजय प्राप्तकरना चाहते हैं। अत राजनीतिक दल चन्दों के माध्यम से धन का संग्रह करते हैं।है। सम्पूर्ण विश्व में लोकतन्त्र के समर्थक देशों ने लोकतान्त्रिक राजनीति में अमीरकी लोग तथा बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका के प्रति चिन्ता व्यक्त की है।
सार्थक विकल्प का अभाव-
राजनीतिक दलों के समक्ष महत्त्वपूर्ण। चुनौती राजनीतिक दलों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। सार्थक विकल्पका तात्पर्य यह है कि राजनीतिक दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्णअन्तर हो। वर्तमान विश्व के विभिन्न दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता गयाहै तथा यह प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व में दिखाई देती है।