राजनिती नीति सिद्धांत का अर्थ महत्व पर प्रकाश डालें 2500 word me answer de
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राजनीतिक दर्शन (Political philosophy) के अन्तर्गत राजनीति, स्वतंत्रता, न्याय, सम्पत्ति, अधिकार, कानून तथा सत्ता द्वारा कानून को लागू करने आदि विषयों से सम्बन्धित प्रश्नों पर चिन्तन किया जाता है : ये क्या हैं, उनकी आवश्यकता क्यों हैं, कौन सी वस्तु सरकार को 'वैध' बनाती है, किन अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है, विधि क्या है, किसी वैध सरकार के प्रति नागरिकों के क्या कर्त्तव्य हैं, कब किसी सरकार को उकाड़ फेंकना वैध है आदि।
प्राचीन काल में सारा व्यवस्थित चिंतन दर्शन के अंतर्गत होता था, अतः सारी विद्याएं दर्शन के विचार क्षेत्र में आती थी। राजनीति सिद्धान्त के अन्तर्गत राजनीति के भिन्न भिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता हैं। राजनीति का संबंध मनुष्यों के सार्वजनिक जीवन से हैं। परम्परागत अध्ययन में चिन्तन मूलक पद्धति की प्रधानता थी जिसमें सभी तत्वों का निरीक्षण तो नहीं किया जाता हैं, परन्तु तर्क शक्ति के आधार पर उसके सारे संभावित पक्षों, परस्पर संबंधों प्रभावों और परिणामों पर विचार किया जाता हैं।
परिचय संपादित करें
'सिद्धान्त' का अर्थ है तर्कपूर्ण ढंग से संचित और विश्लेषित ज्ञान का समूह। राजनीति का सरोकार बहुत-सी चीजों से है, जिनमें व्यक्तियों और समूहों तथा वर्गों और राज्य के बीच के संबंध और न्यायपालिका, नौकरशाही आदि जैसी राज्य की संस्थाएँ शामिल हैं।
राजनीतिक सिद्धान्त की परिभाषा करते हुए डेविड वेल्ड कहते हैं-
राजनीतिक जीवन के बारे में ऐसी अवधारणाओं और सामान्यीकरणों का एक ताना-बाना है ‘जिनका संबंध सरकार, राज्य और समाज के स्वरूप, प्रयोजन और मुख्य विशेषताओं से तथा मानव प्राणियों की राजनीतिक क्षमताओं से संबंधित विचारों, मान्यताओं एवं अभिकथनों से है।
एंड्रू हैकर की परिभाषा के अनुसार-
राजनीतिक सिद्धान्त एक ओर अच्छे राज्य और अच्छे समाज के सिद्धान्तों की तटस्थ तलाश और दूसरी ओर राजनीतिक तथा सामाजिक यथार्थ की तटस्थ खोज का संयोग है।
गुल्ड और कोल्ब ने राजनीतिक सिद्धान्त की एक व्यापक परिभाषा करते हुए कहा है कि राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीति विज्ञान का एक उप-क्षेत्र है, जिसमें निम्नलिखित का समावेश हैः
राजनीतिक दर्शन - राजनीति का एक नैतिक सिद्धान्त और राजनीतिक विचारों का एक ऐतिहासिक अध्ययन,
एक वैज्ञानिक मापदंड,
राजनीतिक विचारों का भाषाई विश्लेषण,
राजनीतिक व्यवहार के बारे में सामान्यीकरणों की खोज और उनका व्यवस्थित विकास।
हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बुनियादी तौर पर राजनीतिक सिद्धान्त का संबंध दार्शनिक तथा आनुभविक दोनों दृष्टियों से राज्य की संघटना से है। राज्य तथा राजनीतिक संस्थाओं के बारे में स्पष्टीकरण देने, उनका वर्णन करने और उनके संबंध में श्रेयस्कर सुझाव देने की कोशिश की जाती है। निःसन्देह, नैतिक दार्शनिक प्रयोजन का अध्ययन तो उसमें अंतर्निहित रहता ही है। चिंतक वाइन्स्टाइन ने गागर में सागर भरते हुए कहा था कि राजनीतिक सिद्धान्त मुख्यतः एक ऐसी संक्रिया है जिसमें प्रश्न पूछे जाते हैं, न प्रश्नों के उत्तरों का विस किया जाता है व प्राणियों के सार्निक जीध में काल्पक परिप्रेक्ष्यों की रचना की जाती है। जो प्रश् पूछे जाते हैं वे कुरह के होते हैं. प्रश्नों के उत्तरदेता रहा है गया है क्योंक क्या सामान्य भलाई के लिए संयुक्त कार्यवाही की जाती है।
राजनीतिक सिद्धान्त तथा राजनीतिक दर्शन संपादित करें
दर्शन में सत्य और ज्ञान की खोज में किसी भी विषय पर किए गए समस्त चिंतन का समावेश है। जब वह खोज राजनीतिक विषयों पर होती है तब उसे हम राजनीतिक दर्शन कहते हैं। इसलिए जरूरी नहीं कि उसमें कोई सिद्धान्त प्रस्तावित किया जाए और राजनीतिक दर्शन तथा राजनीतिक सिद्धान्त में यही अंतर है। इस प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक दर्शन का हिस्सा है, लेकिन राजनीतिक दर्शन अधिकांशतः काफी अधिक व्यापक होता है और आवश्यक नहीं कि उसमें कोई सिद्धान्त शामिल हो।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दर्शन राज्य, सरकार, राजनीति, स्वतंत्रता, न्याय, संपत्ति, अधिकारों, कानून और किसी भी प्राधिकरण द्वारा कानूनी संहिता को लागू कराने आदि से संबंधित प्रश्नों अर्थात् वे क्या हैं? उनकी जरूरत अगर है तो क्यों है? कौन-सी बातें किसी सरकार को वैध बनाती हैं, उसे किन अधिकारों और किन स्वतंत्रताओं की रक्षा करनी चाहिए और उसे क्यों और कौन-सा रूप ग्रहण करना चाहिए और कानून क्यों है और क्या है और वैध सरकार के प्रति नागरिकों के कर्तव्य यदि हैं तो क्या हैं और कब किसी सरकार को अपदस्थ कर देना वैध होगा या नहीं होगा आदि प्रश्नों का अध्ययन है। ‘राजनीतिक दर्शन’ से बहुधा हमारा तात्पर्य राजनीति के प्रति सामान्य दृष्टिकोण या उसके संबंध में विशिष्ट नैतिकता अथवा विश्वास या रुख से होता है और यह सब जरूरी तौर पर दर्शन के संपूर्ण तकनीकी विषय के अंतर्गत नहीं आता है।
राजनीतिक दर्शन का सरोकार अक्सर समकालीन प्रश्नों से नहीं, बल्कि मनुष्य के राजनीतिक जीवन के अधिक सार्वभौम प्रश्नों से होता है। लेकिन राजनीतिक सिद्धान्तकार की दृष्टि मुख्य रूप से समकालीन राजनीतिक जीवन पर होती है और यद्यपि राज्य के स्वरूप और प्रयोजन और इसी प्रकार के सामान्य प्रश्नों की व्याख्या करने में वह दिलचस्पी लेता है तथापि वह राजनीतिक व्यवहार, राज्य तथा नागरिकों के बीच के वास्तविक संबंध और समाज में शक्ति की भूमिका के यथार्थों का वर्णन करने और उन्हें समझने की भी कोशिश कर रहा होता है। राजनीति विज्ञान का अध्ययन करते हुए हमें यह महसूस होता है कि राजनीतिक सिद्धान्त की अनुपूर्ति हमें राजनीतिक दर्शन के अध्ययन से करनी चाहिए अन्यथा वह बंजर और अप्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
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Emotional attraction is “also more important in the long run of a relationship and can create a stronger connection than physical attraction alone