राजनीति और अपना अपराध जगत पर अनुच्छेद लिखें
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किसी भी देश में सफल लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का होना आवश्यक है । राजनीतिक दलों को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है, लेकिन आज इस प्राण को लेने के लिए यमराजों की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है ।
जनता आज इन्हीं यमराजों से तबाह हो रही है । वे तरह-तरह के मुद्दों की अग्नि सुलगाकर उसमें घी का काम कर रहे हैं । इस ज्वाला की लपटों में झुलसती है तो केवल यहाँ की निर्दोष जनता । राजनीतिक दलों द्वारा उत्पन्न इस संकट से केवल भारत ही नहीं वरन् अमेरिका, रूस, फ्रांस, इटली, इंग्लैंड इत्यादि दुनिया बड़े-बड़े देश जूझ रहे हैं ।
बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण और गांधी जैसे महापुरुषों की यह पुण्य-भूमि सदियों से सिद्धांत, अनुशासन, सत्य और अहिंसा की राह दुनिया को दिखानेवाले भारत के लिए यह कैसी त्रासदी है कि यहाँ राजनीति के दौर की समाप्ति के साथ ही लुभावने नारे, तुष्टीकरण की नीति, धन, हिंसा, असामाजिक और संदिग्ध चरित्रवाले व्यक्तियों का राजनीति में धड़ल्ले से प्रवेश हो रहा है ।
राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है । भारत जैसे विकासशील देश में अपराधों के नए तौर-तरीकों और तकनीकों का भी दिन-प्रतिदिन विकास होता जा रहा है । अपराध के इस समीकरण को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है:
फूट डालो उगैर शासन करो’ की नीति:
भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय राष्ट्र के तत्कालीन शीर्ष नेताओं की हठधर्मिता और व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण देश का विभाजन हुआ, क्योंकि वे जानते थे कि एक साथ रहकर अपना मतलब सिद्ध नहीं कर पाएँगे ।
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