राजपुर गाँव से विद्यासागर के पिता ठाकुरदास बंधोपाध्याय कलकत्ता चले आए थे। कुछ तो रोज़गार
करना होगा! वरना माँ और पाँच-पाँच भाई-बहनों के खाने-पहनने का इंतजाम कैसे होगा? उनके पिता
रामजय तो कब के लापता हो गए थे। कुछ ही दिनों में एक नौकरी मिल भी गई। तनख्वाह कितनी?
दो सौ रुपए! उनके रहने का अपना एक ठिकाना था, इसलिए पूरे पैसे वे गाँव भेज दिया करते थे।
काम-धाम अच्छा करने लगे तो बाद में तनख्वाह थोड़ी बढ़ भी गई। पूरे पाँच सौ मिलने लगे और
आगे चलकर सात सौ रुपए। यह खबर सुन गाँव भर में उत्सव-सा मच गया। नीलू को आश्चर्य क्यों
"बाप रे! इतनी तनख्वाह ? पता है हमारे ही गाँव का लड़का है!"
हो रहा था?
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