Hindi, asked by ᴅʏɴᴀᴍɪᴄᴀᴠɪ, 9 months ago

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Answered by Natsukαshii
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यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।यात्री : खुले पैसे नहीं हैं।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।यात्री : खुले पैसे नहीं हैं।कंडक्टर : तो फिर आप शेष पाँच रूपए बाद में ले लेना।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।यात्री : खुले पैसे नहीं हैं।कंडक्टर : तो फिर आप शेष पाँच रूपए बाद में ले लेना।यात्री : (थोड़ी देर में लाल किला आ जाता है और यात्री कंडक्टर से कहता है) कंडक्टर साहब! बाकी के पाँच रूपए दे दो।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।यात्री : खुले पैसे नहीं हैं।कंडक्टर : तो फिर आप शेष पाँच रूपए बाद में ले लेना।यात्री : (थोड़ी देर में लाल किला आ जाता है और यात्री कंडक्टर से कहता है) कंडक्टर साहब! बाकी के पाँच रूपए दे दो।कंडक्टर : ये लो पांच रूपए. लाल किला आ गया।

यात्री : (बस के रुक जाने पर कंडक्टर से पूछता है) यह बस कहाँ तक जायेगी ?कंडक्टर : आपको कहाँ जाना है ?यात्री : जायेगी, जल्दी बैठो।यात्री : (बस में चढ़कर) एक टिकट लाल किले का देना।कंडक्टर : (पांच रूपए का टिकट देते हुए) यह लो, लाओ पांच रूपए दो।यात्री : (दस रूपए का नोट देते हुए) यह लो, पांच रूपए काट लो।कंडक्टर : पाँच रूपए खुले दो।यात्री : खुले पैसे नहीं हैं।कंडक्टर : तो फिर आप शेष पाँच रूपए बाद में ले लेना।यात्री : (थोड़ी देर में लाल किला आ जाता है और यात्री कंडक्टर से कहता है) कंडक्टर साहब! बाकी के पाँच रूपए दे दो।कंडक्टर : ये लो पांच रूपए. लाल किला आ गया।यात्री : धन्यवाद! (कहकर बस से नीचे उतर जाता है।)

PLEASE

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धन्यवाद

Answered by Dheerajnaik46257
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Explanation:

आज का संवाद

हिंदी स‌माज में गृहयुद्ध का राजनीतिक मतलब बेहद स‌ंगीन है और हिंदी स‌माज की दिशाहीनता ही आज इस अनंत वधस्थल की असली नींव है।धर्मनिरपेक्षता बनाम स्त्री अस्मिता का यह गृहयुद्ध हमारे स‌भी जरुरी मुद्दों को हाशिये पर धकेल रहा है और आपसी कटुता इस स्तर तक पहुंच रहा है कि विमर्श का माहौल ही खत्म हो रहा है।

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