राजस्थान में जन-जागृति के कोई दो कारण लिखिए।
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राजस्थान में राजनीतिक जागृति के कारण
किसानों में व्याप्त असन्तोष और उनके आन्दोलन
इस समय जागीरदारों द्वारा किसानों पर बहुत अत्याचार किया जा रहा था। सारंगधरदास के अनुसार, 'जीवन और मृत्यु के अलावा अन्य सभी बातों में जागीरदार लोग अपनी प्रजा के वास्तविक शासक थे तथा वे अपनी प्रजा पर मनमाना अत्याचार करते थे।'
किसानों के असन्तोष के कारण - (क) जागीरदार किसानों पर बहुत अत्याचार कर रहे थे। डॉ० एम० एस० जैन के अनुसार , ' जागीरदारों की बढ़ती हुई विलासिता का व्यय किसानों पर लाद दिया गया। (ख)इस समय कृषि भूमि की माँग में वृद्धि होने के कारण जागीरदारों का शोषण भी बढ़ता जा रहा था।
बिजौलिया का कृषक आन्दोलन - बिजौलिया की जागीर मेवाड़ के अधीन थी तथा यहाँ के किसानों में जागीरदारों का शोषण के विरुद्ध भयंकर असन्तोष व्याप्त था। अत: उन्होंने नानजी पटेल एवं साधु सीताराम के नेतृत्व में आन्दोलन छेड़ दिया। जागीरदारों तथा मेवाड़ के महाराजा ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए बहुत अत्याचार किये, परन्तु उन्हें असफलता ही हाथ लगी। १९१५ ई० में विजय सिंह पथिक ने आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाल लिया। धीरे - धीरे बिजौलिया के आन्दोलन ने इतना उग्र रुप धारण कर लिया कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी चर्चा की जाने लगी। वहाँ के किसानों ने अंग्रेजों के समक्ष अपनी माँगें रखी तथा उसकी गाँधीजी का नैतिक समर्थन भी प्राप्त कर लिया।
सरकार को इस आन्दोलन में रुस की बेल्शेविक आन्दोलन की छवि दिखने लगी। अत: उसने १९२२ ई० में बिजौलिया के किसानों से समझौता कर लिया, परन्तु यह समझौता स्थाई सिद्ध नहीं हुआ। १९३१ ई० में किसानों ने शान्तिपूर्ण तरीके से पुन: आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। सेठ जमनालाल बजाज एवं माणिक्यलाल भी इस आन्दोलन से जुड़गये थे तथा आन्दोलन ने अखिल भारतीय समस्या का रुप ले लिया था।
जमनालाल बजाज ने उदयपुर के महाराजा से आन्दोलन के बारे में बातचीत की, जिसके कारण जपलाई , १९३१ ई० को समझौता हो गया, परन्तु सरकार ने किसानों के उनकी जमीनें वापस नहीं दी। १९४१ ई० में किसानों को उनकी जमीनें लौटा दी गयीं, जिसके कारण यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
बेंगू का किसान आन्दोलन - बिजौलिया आन्दोलन से प्रेरित होकर बेंगू के किसानों ने भी १९२१ ई० में आन्दोलन छेड़ दिया। जागीरदार ने हिंसात्मक साधनों के द्वारा इस आन्दोलन को निर्ममतापूर्वक कुचलने का प्रयास किया, परन्तु इससे आन्दोलन और तीव्र गति से भड़क उठा। भारतीय समाचार पत्रों ने किसानों पर किये जा रहे अत्याचारों के सामाचार को प्रमुखता से छापा , जिसके कारण यह आन्दोलन सुर्किखयों में आ गया। इससे घबराकर वहाँ के जागीरदारों ने किसानों से समझौता कर लिया।
भोमट का भील आन्दोलन - १९१८ ई० में मेवाड़ सरकार के प्रशासनिक सुधारों के विरुद्ध भोमट के भीलों ने आन्दोलन छेड़ दिया। गोविन्द गुरु ने भीलों में एकता स्थापित करने का प्रयास किया। मोतीलाल तेजावत ने भील आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण इस आन्दोलन ने और जोर पकड़ लिया। भीलों ने लागत तथा बेगार करने से इनकार कर दिया। सरकार ने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमन - चक्र का सहारा लिया, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इस आन्दोलन से भीलों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई। सरकार ने अनेक प्रयत्नों के बाद १९२९ ई० में तेजावत को गिरफ्तार कर लिया तथा १९३६ ई० में रिहा कर दिया।