राजतंत्र पर दयानंद सरस्वती के विचार क्या थे
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राजतंत्र के विषय में स्वामी दयानंद के विचार...
स्वामी दयानंद सरस्वती राजतंत्र के समर्थक नहीं थे। वह गणतंत्र के समर्थक थे। स्वामी दयानंद सरस्वती ने राज्यतंत्र के स्थान पर गणतंत्र के महत्व को स्थापित करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने त्रि-सभाओं के सहयोग से शासन कार्य करने की पद्धति का समर्थन किया, जिसमें अंतिम शक्ति जनता के हाथ में थी। उनके अनुसार यदि किसी गणतंत्र में शासन तंत्र वेद विरुद्ध आचरण करे तो जनता को उसका विरोध करना चाहिए और यह बिल्कुल धर्म संगत होगा। ऐसे विरोध से ही राजनीतिक क्रांति का उदय होता है।
स्वामी दयानंद ने शासन के विकेंद्रीकरण का समर्थन किया था। उनके विचार में शासक को अपने राज्य के संचालन के लिए और अपने राज्य के कार्यों को संपादित करने के लिए 200 से 500 गांवों के बीच एक राज्य अधिकारी नियुक्त करना चाहिए। इससे शासन व्यवस्था को एक व्यवस्थित रूप मिलेगा।
इस तरह स्वामी दयानंद सरस्वती गणतंत्र शासन व्यवस्था के पक्षधर थे और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच सामंजस्य के साथ न्यायाधीशों पर प्रशासन के नियंत्रण के पक्षधर थे। उनके अनुसार जहां नैतिकता और सत्यता राजनीति और शासन नीति का नियम और मापदंड है तो शत्रुओं और विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षा के लिए यह स्पष्ट कूटनीति भी आवश्यक होनी चाहिए।