राजधर्म कहानी के आधार पर सवं ाद लि खो
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Answer:
बोधिसत्व से ………………………………. व्रत है।”
संदर्भ:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के ‘‘राजधर्म” नामक पाठ से लिया गया है। यह जातक कथा (कहानी) से उद्धृत है।
प्रसंग:
राजा ने बोधिसत्व द्वारा दिए गए कड़वे गोदे थूक दिए। बोधिसत्व ने बताया कि राजा के अधार्मिक होने से जंगल के कन्दमूल और फल नीरस हो जाते हैं।
व्याख्या:
राजा ने स्वयं बोधिसत्व को विनयपूर्वक यह सच्चाई बताई कि उसने ही पहले गोदों । (फलों) को मीठा किया था और बाद में उन्हें कड़वा कर दिया। पहले वह धार्मिक और न्यायपूर्ण ढंग से राज्य करता था परन्तु बाद में अन्याय करना शुरू कर दिया। बोधिसत्व ने जो राजधर्म बताया, वह सत्य सिद्ध हो गया। अतः राजा ने राजधर्म अपनाकर कड़वे फलों को मीठा करने का इरादा किया। उसने अपने इस संकल्प और व्रत का पालन करना शुरू कर दिया। उसका राज्य फिर खुशहाली से भर गया।
पाठ का सर (सारांश)
प्राचीनकाल में वाराणसी में ब्रह्मदत्त नामक धर्म और न्यायपरायण राजा राज्य करता था। उसके राज्य में बोधिसत्व (बुद्ध) एक ब्राह्मण कुल में पैदा हुए। वह हिमालय प्रदेश में तपस्या में लीन रहते थे।
राजा ब्रह्मदत्त विवेकशील था। राज्य में कोई ऐसा व्यक्ति न था, जो उसके दोष बताए। एक दिन राजा घूमता हुआ हिमालय प्रदेश में बोधिसत्व के आश्रम में पहुँचा। उसने बोधिसत्व को प्रणाम किया और चुपचाप बैठ गया। बोधिसत्व द्वारा दिए गए मीठे और स्वादिष्ट गोदे खाकर, राजा ने उनके मीठे और स्वादिष्ट होने का कारण पूछा। बोधिसत्व ने बताया कि राजा के धार्मिक और न्यायप्रिय होने से सब वस्तुएँ मधुर होती हैं। इस बात की सच्चाई जानने को राजा ने अधर्म और अन्याय से राज्य करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद राजा फिर आश्रम में पहुँचा। इस बार जो गोदे उसने खाए, वह कड़वे थे। बोधिसत्व ने इसका कारण राजा का अधार्मिक और अन्यायी होना बताया। राजा के कुमार्ग पर चलने से प्रजा भी वैसा ही करती है। इसके प्रतिकूल धर्म का अनुसरण करने वाले राजा की प्रजा भी धर्म का मार्ग अपनाती है। राजा ने बोधिसत्व के सामने प्रत्यक्ष होकर सारी बात बता दी। उसने निश्चय किया कि वह गोदों को कभी कड़वा नहीं होने देगी। उसने धर्मपूर्वक न्याय से राज्य करना शुरु कर दिया। राज्य में फिर से सम्पन्नता आ गई।
Answer:
rfer to the attachmrnt.