राजवंशों ने भृकुटी क्यों तानी थी?
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Explanation:
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
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कविता
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फ़िरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
व्याख्या
यहाँ सुभद्रा जी ने अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के कारण को दर्शाया है। 1857 में अंग्रेज़ों के अत्याचारों की हद पार हो गई थी। अंग्रेज़ धीरे-धीरे भारत पर अपना कब्ज़ा कर रहे थे। उनके इस कृत्य से सभी राजा चौकन्ने हो गए थे। अंग्रेज़ों के प्रति राजवंशों के अन्दर क्रोध उत्पन्न हो गया था। अंग्रेज़ों का दमन करने के लिए सारी रियासतों के राजा एक होने लगे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो भारत देश में जवान व्यक्ति की भांति रक्त का संचार हो रहा है। अंग्रेज़ों के साथ रहते हुए राजाओं तथा जनता ने जाना था कि वे गुलाम बन चुके हैं। उन्हें आज़ादी का मूल्य अब पता चल रहा था। अब सबने मिलकर यह प्रण कर लिया था कि किसी भी तरह एक होकर अंग्रेज़ों को भारत से बाहर खदेड़ देंगे। अब सभी राजाओं ने अपनी तलवारों को म्यान से निकालकर युद्ध की घोषणा कर दी थी। यह समय था सन् अठारह सौ सत्तावन का। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेले और हरबोलों के मुँह से यही कहानी सुनी थी कि सन् अठारह सौ सत्तावन के युद्ध में जिसने स्त्री होते हुए भी पुरुषों जैसा शौर्य व वीरता दिखाई, वह झाँसी वाली रानी थी।
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