रेखांकित शब्द का कारक - भेद चुनिए । उमेश ने खाना खा लिया था ।
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Explanation:
कारक के बारे में बहुत सी भ्रातियॉं है। अधिकतर लोगों के लिए कारक का अर्थ है— कि” ने, से ,को, में, पर” आदि परसर्ग चिह्न है, परंतु ध्याान रखिए –परसर्ग या कारक चिह्न स्वंय में कारक नहीं है। बल्कि कारकों को सूचित करने वाले चिह्न है।
अर्थात हम जानते है कि– वाक्य की रचना क्रिया पद तथा एक या एक से अधिक संज्ञा पदों के योग से होती है। वाक्य में आने वाली प्रत्येक उस वाक्य की क्रिया को सम्पन्न कराने में कुछ ना कुछ सहयोग अवश्य देती है। अत: इन सभी संज्ञा पदों का वाक्य की क्रिया के साथ कोई न कोई संबंध जुड जाता है। इस तरह हर संज्ञा का क्रिया के साथ अलग अलग संबंध होता है।
उदहारण के लिए —
वाक्य -1 कुली ने रेलगाडी में सूटकेस चढाया।
वक्य-2 बच्चे ने पेसिंल से चित्र बनाया।
वाक्य-3 मॉं ने नौकर को मिठाई दी।
उपर्युक्त वाक्यों में किसी ना किसी का संबंध एक दूसरे से अवश्य है।
दूसरे शब्दों में – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) ‘कारक’ कहते हैं।
इन दो ‘परिभाषाओं’ का अर्थ- यह हुआ कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही ‘कारक’ कहलाता है।
तभी वे वाक्य के अन्य शब्दों से सम्बन्ध रखने योग्य ‘पद’ होते है और ‘पद’ की अवस्था में ही वे वाक्य के दूसरे शब्दों से या क्रिया से कोई लगाव रख पाते हैं। ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि विभित्र विभक्तियाँ विभित्र कारकों की है। इनके लगने पर ही कोई शब्द ‘कारकपद’ बन पाता है और वाक्य में आने योग्य होता है। ‘कारकपद’ या ‘क्रियापद‘ बने बिना कोई शब्द वाक्य में बैठने योग्य नहीं होता।
अन्य शब्दों में- संज्ञा अथवा सर्वनाम को क्रिया से जोड़ने वाले चिह्न अथवा परसर्ग ही कारक कहलाते हैं।इन चिह्नों को कारक चिह्न या परसर्ग कहते है। इन्हें विभक्ति चिह्न भी कहा जाता है।
जैसे-
”रामचन्द्रजी ने खारे जल के समुद्र पर बन्दरों से पुल बँधवा दिया।”
इस वाक्य में ‘रामचन्द्रजी ने’, ‘समुद्र पर’, ‘बन्दरों से’ और ‘पुल’ संज्ञाओं के रूपान्तर है, जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का सम्बन्ध ‘बँधवा दिया’ क्रिया के साथ सूचित होता है।
दूसरा उदाहरण-
श्रीराम ने रावण को बाण से मारा
इस वाक्य में प्रत्येक शब्द एक-दूसरे से बँधा है और प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में क्रिया के साथ है।
यहाँ ‘ने’ ‘को’ ‘से’ शब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द न हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला रूप कारक होता है।
विभक्ति या परसर्ग –
जिन प्रत्ययों की वजह से कारक की स्थिति का बोध होता है, उसे विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।–
जैसे