रूखा-सूखा खाइ के, ठंडा पानी पीव।
देख पराई चूपड़ी, मत ललचावे जीव।।
का भला न बोलना, अति की भली न चूप
का भला न बरसना, अति की भली .न धू
बरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया
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देख पराई चौपड़ी ,मत ललचावे जिये ,
रूखा सूखा खाय के ,ठंडा पानी पिये।
रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी (पीव ),
देख पराई चुपड़ी मत ललचावे जी (जीव )।
प्रश्न में दिया गया दोहा कबीर जी द्वारा लिखा गया है | कबीर जी ने जीवन की मौखिक परम्परा के बारे में बताया है |
व्याख्या :
कबीर जी समझाना चाहते है कि जीवन में संतोष ही सबसे बड़ा धन है | भगवान ने हमें जो दिया है , हमें उसी में प्रसन्न रहना चाहिए | हमें जीवन में किसी और की समृद्धि और धन -दौलत से जलना नहीं करना चाहिए | जो कुछ तुम्हें भगवान ने दिया है , उसी में अभिशाप न समझो , उसे भगवान का उपहार समझ कर अपने जीवन को व्यतीत करू | रुखा-सुखा खा के ठंठा पानी पियो |
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