रोला और सोरठा में क्या अंतर है
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सोरठा में दो पद, चार चरण, प्रत्येक पद-भार २४ मात्रा तथा ११ - १३ पर यति रोला की ही तरह होती है किन्तु रोला में विषम चरणों में लघु - गुरु चरणान्त बंधन नहीं होता जबकि सोरठा में होता है.
सोरठा तथा रोला में दूसरा अंतर पदान्ता का है. रोला के पदांत या सम चरणान्त में दो गुरु होते हैं जबकि सोरठा में ऐसा होना अनिवार्य नहीं है.
सोरठा विश्मान्त्य छंद है, रोला नहीं अर्थात सोरठा में पहले - तीसरे चरण के अंत में तुक साम्य अनिवार्य है, रोला में नहीं.
इन तीनों छंदों के साथ गीति काव्य सलिला में अवगाहन का सुख अपूर्व है.
रोला और सोरठा में क्या अंतर
स्पष्टीकरण:
रोला :
आचार्य संजीव‘सलिल’ के अनुसार….. रोला एक चतुश्पदीय अर्थात चार पदों (पंक्तियों ) का छंद है। हर पद में दो चरण होते हैं। रोला के ४ पदों तथा ८ चरणों में ११ – १३ पर यति होती है. यह दोहा की १३ – ११ पर यति के पूरी तरह विपरीत होती है ।हर पद में सम चरण के अंत में गुरु ( दीर्घ / बड़ी) मात्रा होती है ।
११-१३ की यति सोरठा में भी होती है। सोरठा दो पदीय छंद है जबकि रोला चार पदीय है। ऐसा भी कह सकते हैं के दो सोरठा मिलकर रोला बनता है।
सोरठा:
सोरठा रोला जैसा ही होता है, बस अंतर इतना है कि सोरठे में विषम चरणों में तुक होती है सम चरणों में तुक होना जरुरी नहीं है। दूसरा अंतर ये है कि सोरठे में सम चरणों के अंत में लघु वर्ण आता है। बाकी संरचना समान ही है; विषम चरणों में ११ मात्राएँ तथा सम चरणों १३।