रौलस के न्याय सिद्धंत एवं इसकी आलोचना की विवेचना कीजिए
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जॉन रॉल्स का न्याय-सिद्धांत अवसर की समानता, समान स्वतन्त्रताओं, प्राथमिक वस्तुओं का न्यायपूर्ण वितरण, आय की समानता, संविधानिक लोकतन्त्र का समर्थन, समाज के सद्गुण के रूप में न्याय की सर्वोच्चता, सामाजिक कल्याण में वृद्धि आदि बातों पर विचार करके उदारवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
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जॉन रॉल्स (अंग्रेज़ी: John Bordley Rawls ; 21 फ़रवरी 1921 – 24 नवम्बर 2002) बीसवीं सदी के महानतम नैतिक विचारक व अमेरिकी जखाउदारवाद के दार्शनिक थे। उन्होंने 1971 में अपनी पुस्तक 'अ थिअरी ऑफ जस्टिस' (A Theory of Justice) का प्रकाशन करके राजनीतिक चिन्तन के पुनरोदय के द्वार खोल दिए। इस पुस्तक के कारण रॉल्स को राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में वही स्थान प्राप्त हें जो प्लेटो, एक्विनॉस, कॉण्ट, कार्ल मार्क्स तथा मैकियावेली को प्राप्त है। रॉल्स के आगमन से राजनीतिक चिन्तन की शास्त्रीय परम्परा का पुनरोदय हुआ है। रॉल्स ने राजनीतिक चिन्तन की डूबती नाव को बचाकर अपना नाम राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में सुनहरी अक्षरों में लिखवाने का गौरव प्राप्त है।[1]
उनकी रचना 'अ थिअरी ऑफ जस्टिस' ने उदारवाद को नई दिशा व चेतना प्रदान की है।[2] इस पुस्तक में ‘सामाजिक न्याय’ की संकल्पना विकसित करके रॉल्स ने एक आदर्श राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण का मार्ग तैयार किया है।[3] इसी कारण डेनियल बैल ने रॉल्स को समाजवादी नैतिकता का विचारक तथा उसके चिन्तन को समाजवादी नैतिकता का उदारवादी चिन्तन माना है। रॉल्स का दर्शन समाजवादियों के लिए समाजवादी तथा व्यक्तिवादियों के लिए व्यक्तिवादी है। रॉल्स की ‘सामाजिक न्याय’ की संकल्पना रॉल्स को समाजवाद के तथा व्यक्ति की गरिमा की बात उसे व्यक्तिवादी विचारक साबित करने में सक्षम हैं। उपयोगितावाद का विरोधी तथा सामाजिक न्याय के सरोकार रखने के कारण रॉल्स का सामाजिक न्याय का सिद्धान्त आज राजनीतिक चिन्तन का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है और सामाजिक न्याय की संकल्पना राजनीतिक चिन्तन की केन्द्रीय अवधारणा है।