राम आज के युग में प्रासंगिक हैं (अनुच्छेद-लेखन )
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श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम-'प्रजातंत्र' है। उनकी कार्यप्रणाली को समझने से पहले 'श्रीराम' को समझना होगा। श्रीराम यानी संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता और पराक्रम। सच कहा जाए तो 'अध्यात्म गीता' का आरंभ श्रीराम जन्म से आरंभ होकर 'श्रीकृष्ण' रूप में पूर्ण होता है। एक आम आदमी बनकर जीवनयापन करने के लिए जो 'तत्व', 'आदर्श', 'नियम' और धारणा जरूरी होती है उनके सामंजस्य का नाम श्रीराम है। 'एक गाय' की तरह 'सरल' और 'आदर्श' लेकर जिंदगी गुजारना यानी श्रीराम होना है।
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भगवान राम ने जीवन पर्यत मर्यादा का पालन करते हुए सदैव सत्य का मार्ग अपनाया था। भगवान राम का वनगमन भी पूर्व निर्धारित था। क्योंकि आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए उनका वन जाना अति आवश्यक था।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥
श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम-'प्रजातंत्र' है। उनकी कार्यप्रणाली को समझने से पहले 'श्रीराम' को समझना होगा। श्रीराम यानी संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता और पराक्रम। सच कहा जाए तो 'अध्यात्म गीता' का आरंभ श्रीराम जन्म से आरंभ होकर 'श्रीकृष्ण' रूप में पूर्ण होता है। एक आम आदमी बनकर जीवनयापन करने के लिए जो 'तत्व', 'आदर्श', 'नियम' और धारणा जरूरी होती है उनके सामंजस्य का नाम श्रीराम है। 'एक गाय' की तरह 'सरल' और 'आदर्श' लेकर जिंदगी गुजारना यानी श्रीराम होना है।
एक 'मानव' को एक मानव बनकर श्रेष्ठतम होते आता है-इसका साक्षात उदाहरण यानी श्रीराम। 'नर' से 'नारायण' कैसे बना जाए यह उनके जीवन से सीखा जा सकता है। एक तरफ उनका 'आदर्श' हमारे मन को जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाता है, वही दूसरी तरफ उनकी 'नैतिकता' मानव मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है। उनका हर एक कार्य हमारे विवेक को जगाता है और हमाराआत्मविश्वास बढ़ाता है।
एक समय ऐसा भी था जब कोई आदमी रास्ते में मिलता तो वह दूसरे आदमी को 'राम-राम' बोलते हुए आगे बढ़ जाता था और आज भी कोई आदमी इस दुनिया से 'अंतिम विदाई' लेता है तो 'रामराम' बोलकर ही। अपनी 'मां' और 'मातृभूमि' के लिए जिसने 'सोने की लंका' जीतने के बाद एक क्षण में त्याग दी ऐसे श्रीराम का जीवन हम मानवों को प्रेरणा देता है कि-'लालच' और 'पराई संपत्ति' हमें कभी भी सुख नहीं देती। आम आदमी को झूठे मोह-माया के जाल में उलझने से रोकने में श्रीराम के 'आदर्श' और 'कार्यप्रणाली' आज भी हमारी सच्ची पथप्रदर्शक है।