राम बिन संसै गालि न धरी |
काम क्रोध से मौह मन भाया , इन पंचन मिलि लू।।
हम बत् कवि कुलीन तम पंडित, वा जोगी सन्यासी
यामी गुनी सूर हम वाता , यतु मति को न नाशी ॥
प? गुने कछु समझि न पई नौ लौ अनी भावना
लोहा हर न होड़ यूँ कैसे जो पारस नही परसै]
कतै रैदास और असमझसि , भूलि पर अमर ।
रक नधार नाम जरतरि को, जीववि प्रान धबनेनौर। summary please
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itna bada h tho...
how can I write...???
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