) राम बिन संसैं गाँठि न छूटे। काम क्रोध मोह मद माया, इन पंचन मिलि लूटै।। हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी। ग्यांनी गुनी सूर हम दाता, यहु मति कदे न नासी।। पढ़ें गुनें कछु समझि न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै। लोहा हर न होइ धूं कैसें, जो पारस नहीं परसै।। कहै रैदास और असमझसि, भूलि परै भ्रम भोरे। एक अधार नाम नरहरि कौ, जीवनि प्रान धन मोरै।
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ram bin sanse gadi Na choote
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