राम चरित मानस की कुछ चौपाई लिखिए|
Answers
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
बयरु न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई॥
2. शत्रुता और शत्रु नाश का मंत्र -
भगवान श्रीराम के लघु भ्राता शत्रुघ्न जी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है- शत्रु + घ्न (नाशक) अर्थात् शत्रु का विनाश करने वाले। “जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥”
अर्थात् जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध 'शत्रुघ्न' नाम है। यदि व्यक्ति सर्वप्रथम अपने शत्रु का स्मरण कर उसके बाद शत्रुघ्नजी का स्मरण कर इस चमत्कारी चौपाई का जप करता रहता है, तो शत्रुघ्नजी या तो शत्रु के हृदय से शत्रुता समाप्त कर देते हैं, या शत्रु के अत्यंत दुष्ट या आसुरी शक्ति होने पर उसे विनष्ट कर देते हैं।
3. शत्रु से मुकदमा जीतने का मंत्र -
यदि आपके शत्रु ने आपके ऊपर मुकदमा कर दिया है और आप उसमें सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस चौपाई का जप करें- कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा।।
5. शत्रु से वाद-विवाद में जीतने का मंत्र यदि आप अपने शत्रु को वार्तालाप में हराना चाहते हैं, तो इस चौपाई का जप अत्यंत लाभप्रद है -
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
|रामचरित मानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया महाकाव्य है। उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यामें विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) कियाथा।रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। इस महाकाव्य की भाषा अवधी है जो हिंन्दी की ही एक शाखा है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचन्द्र के निर्मल एवं विशद चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है। यद्यपि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र का वर्णन है परंतु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में उल्लेखनीय अन्तर है। जहाँ वाल्मीकि ने रामायण में राम को केवल एक सांसारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया है वहीं तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
बयरु न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥
तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”