राम काव्य परंपरा का परिचय
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Explanation:
रामकाव्य मूलतः इसी समन्वय भावना के कारण मानवतावादी माना जाता है। व्यक्ति , परिवार और समाज का तथा भोग और त्याग का समन्वय करके संपूर्ण मानव जाति को तथा उसके चिंतन को एक ही धरातल पर प्रस्तुत कर सही अर्थों में मानवतावाद की स्थापना करने का प्रयास किया है। स्वयं राम द्वारा सेतुबंध के शुभ अवसर पर शिवजी की उपासना कराई गई।
Answer:
वैसे ‘ राम ‘ शब्द का प्रयोग वेदों में कुछ स्थलों पर अवश्य हुआ है , परंतु यह राम दशरथ पुत्र राम है।
दक्षिण भारत के रामानुजाचार्य ने श्री वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की थी। जिसमें नारायण के रूप में विष्णु की उपासना का विधान था।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने स्वामी रामानंद को राम कथा काव्य का हिंदी कवि माना है।
जब मुगलों अथवा यवनों का आक्रमण भारत पर प्रारंभ हो गया यहां का धर्म त्राहि-त्राहि कर रही थी उसी समय रामानंद दक्षिण भारत की भक्ति को उत्तर भारत में लेकर आए थे।
” भक्ति उपजी द्रवदी लाए रामानंद ”
राम काव्य की प्रवृत्तियां
यह सर्वमान्य है कि हिंदी में राम काव्य से अभिप्राय तुलसीदास से ही है।
भक्त शिरोमणि कवि तुलसीदास का मूल प्रतिपाद्य आदर्श और मर्यादा रहा है।
समाज के प्रति पूर्ण निष्ठा का भाव इनमें सर्वत्र है इसी प्रकार समन्वय भावना , भक्ति भावना , अछूतोद्धार , सनातन मूल्यों की प्रतिष्ठा , आदि प्रवृतियों से इनकी कृति भरी हुई है।
राम का आदर्श –
राम भक्ति काव्य में ईश्वर की कल्पना आदर्श मूल्य के रूप में की गई है।
उन्हें ईश्वर का अवतार स्वीकार किया गया , उसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर संबोधित किया गया।
अतः वे रामभक्ति को जीवन दिशा मानकर श्रीराम को लोक रक्षक मानक और विष्णु के अवतार दशरथ राम को देवाधिदेव मानकर सर्वस्व समर्पित कर बैठे।
इनकी भक्ति भावना मुख्यता दास्य भाव की है।
भक्ति भावना –
भक्त कवियों की भक्ति भावना प्रमुख्य दास्य भाव की है।
सीता में माधुर्य भाव की भक्ति है तो सुग्रीव में साख्य भाव की तथा दशरथ और कौशल्या आदि में वात्सल्य भाव की।
तुलसी ने नवधा भक्ति के रूप में भक्ति के पारंपरिक भेदों के स्थान पर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा करके अपनी व्यापक संस्कृति का पक्ष रखकर भक्ति का परिचय दिया।
राम भक्ति शाखा के कवि मे ज्ञान की अपेक्षा भक्ति को श्रेष्ठ माना है। परंतु ज्ञान की भी उपेक्षा नहीं की गई है।
समन्वय भावना –
रामकाव्य मूलतः इसी समन्वय भावना के कारण मानवतावादी माना जाता है।
व्यक्ति , परिवार और समाज का तथा भोग और त्याग का समन्वय करके संपूर्ण मानव जाति को तथा उसके चिंतन को एक ही धरातल पर प्रस्तुत कर सही अर्थों में मानवतावाद की स्थापना करने का प्रयास किया है।
स्वयं राम द्वारा सेतुबंध के शुभ अवसर पर शिवजी की उपासना कराई गई।
इस उदारता के कारण रामकाव्य भारतीय जनमानस का प्रिय बन गया है।