राम लक्ष्मण परशुराम संवाद पाठ के आधार पर लक्ष्मण और परशुराम की संवाद को लिखिए
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परशुराम:
शिवधनुष तोड़ा है जिसने
परम शत्रु है वो मेरा
क्षण भर में ना आया सम्मुख
तो होगा संहार बड़ा
लक्षमण:
सुनकर बोले लक्षमण जी
इतना क्यूं क्रोधित होते
बालकाल में ना जाने
कितने धनुष हम तोड़ चुके
परशुराम:
क्रोधित परशुराम तब बोले
धनुष है ये महादेव का
सम्मुख आये मेरे वो
कृत्य है ये जिसका
लक्षमण:
लक्षमण जी ने हँसकर बोला
हमको सभी धनुष लगते हैं सम
नहीं दोष इसमें रघुवर का
स्पर्श मात्र से हुआ विखंड
परशुराम
भड़क उठे परशुराम तब
बोले दुष्ट है तू मुझसे अन्जान
अपनी इन भुजाओं के बल से
क्षत्रियों से किया धरती को वीरान
नादान हो तुम बालक हो
नहीं जानते हो कुछ भी
देख मेरे फरसे से मैंनें
काटी भुजाएं सहस्रबाहु की
लक्ष्मण
समझते हो बड़ा योद्धा खुद को
क्या फूंक से पर्वत उड़ता है
आपके इस फरसे से मुझको
तनिक भय नहीं लगता है
जान आपको भृगुवंंशी
और देख ये यज्ञोपवीत
सहन कर रहा हूँ मैं
आपके ये कटु तीर
देवता, ब्राह्मिन ,गौ,प्रभूभक्त
रघुकुल में ना करते इन पर वार
हारे तो अपकीर्ति मिलती
जो मारे तो लगता पाप
परशुराम विश्वामित्र से:
उद्दंड, मूर्ख बालक ये
मारा जायेगा हाथों मेरे
समझा लो इसको विश्वामित्र
ना देना फिर कोई दोष मुझे
विश्वामित्र
नादान है बालक अभी
प्रभु आप तो महाज्ञानी हैं
अपराध इसका क्षमा करें
आप गुरु हैं स्वामी हैं
लक्षमण
बोल उठे लक्षमण फिर से
नहीं टकराये कभी सच्चे वीर से
तभी रघुवर श्रीराम ने
शान्त किया लक्षमण को इशारे से
श्रीराम
नहीं जानता आपकी शक्ति
वंचित है आपके प्रभाव से
क्षमा कीजिये प्रभु मुनिवर
बालक है नादान ये
लक्षमण नही है अपराधी
धनुष को मैने तोड़ा है
अपराधी आपका मैं हूँ
कहिये मेरी क्या सज़ा है
परशुराम
शिव का धनुष तोड़कर
ज्ञान हमें ही देता है
कटु वचन बोले छोटा भाई
और तू विनती करता है
युद्ध के लिये ललकारता हूँ
मैं तुझको ए अभिमानी
फरसे से दी है बलि राजाओं की
ना समझ निरा सन्त तू अज्ञानी
श्री राम
हे मुनि, पुराना था धनुष
बस छूते ही टूट गया
ब्राह्मण सन्त और ज्ञानी का
रघुकुल ने सदा आदर है किया
सवाल है युद्ध का अगर
तो सत्य महामुनि सुनें
रण में ललकारे काल गर
रघुवंशी उससे युद्ध करे
सुनकर वचन रघुनाथ के
परशुराम को हुआ भान
बोले प्रभु मुझको क्षमा करें
अनजाने में हुई भूल महान
Answer:
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इसमें ब्रज-दुलारे, नटवर-नटेश, कलाप्रेमी कृष्ण की सुंदर रूप-छवि प्रस्तुत की गई है। उनका रूप मनमोहक है। साँवले शरीर पर पीले वस्त्र और गले में बनमाला है। पाँवों में पाजेब और कमर में मुँघरूदार आभूषण हैं। उनकी चाल संगीतमय है।
अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है। शब्द पायल की तरह झनकते प्रतीत होते हैं। यथा
पाँयनि नूपुर मंजु बजें’ में आनुप्रासिकता है। इसका नाद-सौंदर्य दर्शनीय है।।
:कटि किंकिनि कै धुनि की’ में ‘क’ ध्वनि और ‘न’ की झनकार मिल गए-से प्रतीत होते हैं।
‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै बनमाल’ में भी अनुप्रास है।
‘भाषा’ कोमल, मधुर और संगीतमय है। सवैया छंद का माधुर्य मन को प्रभावित करता है।