रामानुजन के जीवन वे गणित में उनके योगदान के बारे में लिखे २०० वर्ड
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श्रीनिवास रामानुजन की गिनती भारत ही नहीं दुनियाँ के महान गणितज्ञ के रूप में की जाती है। भारत के इस महान गणितज्ञ का पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन था। सबसे पहले संख्याओं का सिद्धांत का प्रतिपादन श्रीनिवास रामानुजन् ने ही किया था। उन्होंने विश्व पटल पर भारत का नाम रौशन किया। हर वर्ष 22 दिसंबर को समस्त भारत में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस ( National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में जन्म लिए और अनेकों कठिनाइयों का सामना करते हुए महान् गणितज्ञ बनने के शिखर तक पहुंचे। उनके अंदर गणित के एक सवाल को कई तरीके से हल करने की अद्भुत दक्षता प्राप्त थी।
उनके कई शोध, प्रेमय और सूत्र विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। संख्याओं के सिद्धांत के प्रतिपादित के फलस्वरूप रामानुजन गणितज्ञ के रूप में सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हो गये। श्रीनिवास रामानुजन को गणित का जादूगर कहा जाता है।
यदपि उनका आरंभिक जीवनकाल कष्टों में ही बीते। सबसे अहम बात थी की उन्हें गणित के क्षेत्र में कहीं से किसी तरह का विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला था। फिर भी उन्होंने गणित के संख्याशास्त्र पर आधारित कई शोध किए जो उन्हें विश्व विख्यात बना दिया।
बचपन से ही रामानुजन कुशाग्र बुद्धि के थे। उनकी शिक्षा की शुरुआत तमिल भाषा से हुई। शुरुआत की दिनों रामानुजन को पढ़ाई में तनिक भी मन नहीं लगता था। श्रीनिवास रामानुजन की प्रारम्भिक शिक्षा कुंभकोणम में हुई।
मात्र 10 बर्ष की आयु में उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में अपने जिले में टॉप रहे। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उनका नामांकन उच्च माध्यमिक विधालय में करा दिया गया। यहीं से उनकी गणित के प्रति लगाव बढ़ने लगा।
गणित के प्रति उनका इतना लगाव था की कुछ ही दिनों में अपने क्लास के गणित के किताब का सारे सबाल हल कर देते। कहते हैं की इन्होंने मात्र 15 साल की उम्र में शूब्रिज कार (G. S. Carr.) की पुस्तक के 5000 से अधिक प्रमेयों को प्रमाणित कर दिया था।
साथ ही 18 साल की उम्र में ही उन्होंने लोनी द्वारा लिखी हुई ज्यामिति (advance Trigonometry) में महारत हासिल कर ली। इसके अलाबा उन्होंने और भी कुछ नये प्रमेय का भी आविष्कार किया।