Hindi, asked by satrox5990, 1 year ago

राम नाम के पटतरे, देबे कौं कछु नाहि| क्या ले गुरू संतोषिए , हौस रही मन मांहि

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Answered by shishir303
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राम नाम के पटतरे, देबे कौं कछु नाहि|

क्या ले गुरू संतोषिए , हौस रही मन मांहि

संदर्भ — ये कबीर की एक साखी है। कबीरदास जी हिंदी के महान कवि थे। उन्होंने इस साखी में गुरु की महिमा का वर्णन किया है।

भावार्थ — कबीर कहते हैं कि गुरुजी ने  राम नाम रूपी जो अनमोल रत्न कृपावश मुझ अज्ञानी को दान में दे दिया है इस अनमोल रत्न के समान दक्षिणा देने के लिये मेरे पास कुछ नही है, क्योंकि गुरु ने ज्ञानरूपी, ईश्वर रूपी जो दान मुझे किया है, वो इतना मूल्यवान है कि मुझ निर्धन के पास बदले में चुकाने के लिये उतना मूल्यवान कुछ भी नही है। इतने अमूल्य ज्ञान के लिये मैं अपने गुरु का सदैव आभारी रहूँगा।

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