राम और सुग्रीव के बीच मैत्री का मुख्य कारण क्या था?
Answers
Explanation:
दक्षिण के ऋषयमुका पर्वत पर सुग्रीव नाम का वानर अपने कुछ साथियों के साथ रहते है| सुग्रीव किशकिन्दा के राजा बली के छोटे भाई होते है| राजा बली और सुग्रीव के बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो जाता है, जिस वजह से बली, सुग्रीव को अपने राज्य से निकाल देते है, और उनकी पत्नी को भी अपने पास रख लेते है| बली, सुग्रीव की जान का दुश्मन हो जाते है और उन्हें देखते ही मारने का आदेश देते है| ऐसे में सुग्रीव अपनी जान बचाते हुए, बली से बचते फिरते है| उनसे छिपने के लिए वे ऋषयमुका पर्वत पर एक गुफा में रहते है|
जब राम लक्ष्मण मलय पर्वत की ओर आते है, तब सुग्रीव के वानर उन्हें देखते है और वे सुग्रीव को जाकर बोलते है, दो हष्ट-पुष्ट नौजवान हाथ में धनुष बाण लिए पर्वत की ओर बढ़ रहे है| सुग्रीव को लगता है कि ये बली ही की कोई चाल है| उनके बारे में जानने के लिए सुग्रीव अपने प्रिय मित्र हनुमान को उनके पास भेजते है|
राम हनुमान मिलन (Ram Hanuman Milan) –
हनुमान जी सुग्रीव के आदेश पर राम जी के पास जाते है, वे ब्राह्मण भेष में उनके सामने जाते है| हनुमान राम जी से उनके बारे में पूछते है कि वे राजा जैसे दिख रहे है, तो वे सन्यासी भेष में इस घने वन में क्या कर रहे है| राम जी उन्हें कुछ नहीं बोलते है, तब हनुमान खुद अपनी सच्चाई उनके सामने बोलते है, और बताते है कि वे एक वानर है जो सुग्रीव के कहने पर यहाँ आये है| यह सुन राम उन्हें अपने बारे में बताते है, हनुमान जी जब ये पता चलता है कि ये मर्यादा पुरषोतम राम है, तो वे भाव विभोर हो जाते है, और तुरंत राम के चरणों में गिर उन्हें प्रणाम करते है| राम भक्त हनुमान अपने जन्म से ही इस पल का इंतजार कर रहे होते है, राम जी उनका मिलना, उनके जीवन का बहुत बड़ा एवं महत्पूर्ण क्षण होता है|
राम हनुमान मिलान के बाद लक्ष्मण जी उन्हें बताते है कि सीता माता का किसी ने अपहरण कर लिया है, उन्ही को ढूढ़ने के लिए हम आ पहुंचे है| तब हनुमान उन्हें वानर सुग्रीव के बारे में बताते है, और ये भी बोलते है कि सुग्रीव माता सीता की खोज में उनकी सहायता करेंगें| फिर हनुमान दोनों भाई राम लक्ष्मण को अपने कन्धों पर बैठाकर वानर सुग्रीव के पास ले जाते है|
राम सुग्रीव मित्रता Ram Sugreev Maitri Summary In Hindi
हनुमान सुग्रीव को राम लक्ष्मण के बारे में बताते है, जिसे सुन सुग्रीव सम्मानपूर्वक उन्हें अपनी गुफा में बुलाते है| सुग्रीव अपने मंत्री जामवंत और सहायक नर-नीर से उनका परिचय कराते है| राम सुग्रीव से इस तरह गुफा में रहने का कारण पूछते है, तब जामवंत उन्हें राजा वाली के बारे में सब कुछ बताते है| मंत्री जामवंत फिर राम जी से बोलते है कि अगर वे को मारने में उनकी मदद करेंगें, तो वानर सेना माता सीता को खोजने में उनकी मदद करेगी| और कहते है कि इस तरह दोनों के बीच राजनैतिक संधि हो जाएगी| यह सुन राम जी सुग्रीव की मदद को इंकार कर देते है| वे कहते है कि “मुझे सुग्रीव से राजनैतिक सम्बन्ध नहीं रखना है, ये तो दो राजाओं के बीच होता है, जहाँ सिर्फ स्वार्थ होता है, और मेरे स्वाभाव में स्वार्थ की कोई जगह नहीं है. इस तरह की संधि तो व्यापार की तरह है कि पहले आप मेरी मदद करें, फिर मैं आपकी करूँगा”
जामवंत ये सुन राम से माफ़ी मांगते है, और कहते है कि वे छोटी जाति के है, उन्हें शब्दों का सही उपयोग नहीं पता है, लेकिन नियत साफ है| जामवंत राम जी से कहते है कि उन्हें वो तरीका बताएं जिससे वानर योनी के प्राणी और उनके जैसे उच्च मानवजाति के बीच सम्बन्ध स्थापित हो सके| तब राम जी बोलते है कि वो एक ही नाता है, जो योनियों, जातियों, धर्मो, उंच नीच को पीछे छोड़, एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य से रिश्ता कायम कर सकता है, और वो नाता है ‘मित्रता’ का| राम जी बोलते है कि वे सुग्रीव से ऐसा रिश्ता चाहते है जिसमें कोई शर्त न हो, कोई लेन देन नहीं हो, किसी भी तरह का कोई स्वार्थ न हो, उस रिश्ते में सिर्फ प्यार का आदान प्रदान हो| संधि तो राजा के बीच ही होती है, लेकिन मित्रता तो एक राजा की एक भिखारी से भी हो सकती है|
राम जी सुग्रीव के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखते है, जिसे सुन सुग्रीव भाव विभोर हो जाते है| वे कहते है कि मैं वानर जाति का छोटा सा प्राणी हूँ लेकिन आप मानवजाति के उच्च प्राणी, फिर भी आप मुझसे मित्रता करना चाहते है तो मेरा हाथ एक पिता की तरह थाम लीजिये| राम सुग्रीव के साथ अग्नि को साक्षी मानकर अपनी दोस्ती की प्रतिज्ञा लेते है| इस तरह दोनों के बीच घनिष्ट मित्रता स्थापित हो जाती है|