Hindi, asked by jamil777444, 11 months ago

राम वृक्ष बेनीपुरी के विचार

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Answered by sahilshinde573
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‘पूस की भोर थी. खलिहान में धान के बोझों का अम्बार लगा हुआ था. रखवाली के लिए बनी कुटिया के आगे धूनी जल रही थी. खेत में, खलिहान पर, चारों ओर हल्का कुहासा छाया हुआ था, जिसे छेदकर आने में सूरज की बाल-किरणों को कष्ट हो रहा था. काफी जाड़ा था; धीरे धीरे बहती ठंडी हवा सनककर कलेजे को हिला जाती.’

ऊपर लिखी पंक्तियां रामवृक्ष बेनीपुरी जी की एक कहानी की शुरूआत है. ये उनकी भाषा की सहजता, सुन्दरता और जीवंतता को बताती हैं. अचरज की बात है कि यह भाषा तब की है, जब छायावादी लेखक गोलमोल रचनाओं को उच्चतम साहित्य की श्रेणी में गिनते थे. गद्य की भाषा के रूप में जयशंकर प्रसाद और भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषा जटिल और संस्कृतनिष्ठ थी. उस काल में बेनीपुरी की भाषा सहज सधी और बेहद छोटे-छोटे वाक्यों से बनी सजीली भाषा थी. और इसीलिए लोग उन्हें ‘कलम का जादूगर’ कहते थे.

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