रामभक्त हनुमान के विषय मे दस वाक्य लिखिए-
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हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था ।
हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे।
रामायण में वर्णित हनुमान जी का रूप- उनका मुख वानर समान और शरीर मानव समान है । शरीर अत्यंत बलिष्ठ और वज्र समान है । हनुमान जी जनेऊ धारण करते हैं तथा केवल लंगोट प्रयोग करते हैं । मस्तक पर स्वर्ण का मुकुट और शरीर पर कुछ आभूषण धारण करते हैं । हनुमान जी की पुंछ वानर समान लंबी है और अस्त्र में गदा का प्रयोग करते हैं ।
भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को श्री हनुमान जी किष्किंधा पर्वत पर मिले थे । जब वे दोनों माता सीता को वन में खोज रहे थे । श्री हनुमान जी, अपने परम मित्र वानर राज सुग्रीव से उनकी मित्रता करवा दी । बाद में, सुग्रीव की सेना के साथ रावण का वध करने, राक्षसों का मर्दन करने और माता सीता को पुनः अयोध्या ले आने में, श्री हनुमान जी का विशेष योगदान रहा है।
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी को यमदेव से चिरंजीवी आशीर्वाद प्राप्त है अर्थात वह युगो युगो तक धरती पर रहेंगे ।
हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे।
रामायण में वर्णित हनुमान जी का रूप- उनका मुख वानर समान और शरीर मानव समान है । शरीर अत्यंत बलिष्ठ और वज्र समान है । हनुमान जी जनेऊ धारण करते हैं तथा केवल लंगोट प्रयोग करते हैं । मस्तक पर स्वर्ण का मुकुट और शरीर पर कुछ आभूषण धारण करते हैं । हनुमान जी की पुंछ वानर समान लंबी है और अस्त्र में गदा का प्रयोग करते हैं ।
भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को श्री हनुमान जी किष्किंधा पर्वत पर मिले थे । जब वे दोनों माता सीता को वन में खोज रहे थे । श्री हनुमान जी, अपने परम मित्र वानर राज सुग्रीव से उनकी मित्रता करवा दी । बाद में, सुग्रीव की सेना के साथ रावण का वध करने, राक्षसों का मर्दन करने और माता सीता को पुनः अयोध्या ले आने में, श्री हनुमान जी का विशेष योगदान रहा है।
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी को यमदेव से चिरंजीवी आशीर्वाद प्राप्त है अर्थात वह युगो युगो तक धरती पर रहेंगे ।
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