रामचरितमानस के लक्ष्मण परशुराम के वाद -विबाद का कारण संछेप में लिखए
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राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद (तुलसीदास)
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बिहँसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।।
पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फैंक पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतियाँ कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कुछ कहहु सह रिस रोकी ।।
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।।
बधे पापु अपकीरति हारे । मारतहू पा परिअ तुम्हारे ।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ।।
‘कुम्हड़बतिया’ का उदाहरण क्यों दिया गया है ?
लक्ष्मण के हँसने का क्या कारण है?
‘मुनीसु’ कौन हैं ? लक्ष्मण उनसे बहस क्यों कर रहे हैं?
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बतलाई हैं ?
धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही सेवक होगा-के आधार पर राम के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
परशुराम जी ने अपने फरसे की क्या विशेषता बताई है ?
लक्ष्मण ने परशुराम से किस प्रकार क्षमा-याचना की और क्यों?
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं – यह पंक्ति किसने और किस संदर्भ में कही है ?