रोमन समाज्य मे दासी के साथ कौन व्यावहार किया जाता था
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Answer रोमन समाज्य मे दासी
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नव समाज में जितनी भी संस्थाओं का अस्तित्व रहा है उनमें सबसे भयावह दासता की प्रथा है। मनुष्य के हाथों मनुष्य का ही बड़े पैमाने पर उत्पीड़न इस प्रथा के अंर्तगत हुआ है। दासप्रथा को संस्थात्मक शोषण की पराकाष्ठा कहा जा सकता है। एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमरीका आदि सभी भूखंडों में उदय होने वाली सभ्यताओं के इतिहास में दासता ने सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं के निर्माण एवं परिचालन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। जो सभ्यताएँ प्रधानतया तलवार के बल पर बनी, बढ़ीं और टिकी थीं, उनमें दासता नग्न रूप में पाई जाती थी।
रोम के उत्थान के साथ दासव्यवस्था भी अपने पूर्णत्व को प्राप्त हुई। दासता का सबसे अधिक सबंध युद्धविजय से रहा है। विजेताओं द्वारा अपनी सेवा के लिए पराजितों का उपयोग करना युद्ध की स्वाभाविक परिणति रही है। रोमन साम्राज्य का अभ्युदय एवं प्रसार सैन्यबल पर हुआ अत: रोम में दासप्रथा का प्रचलन अत्यधिक हुआ। रोमन गणराज्य के उत्तरार्ध (ई.पू. तीसरी एवं दूसरी शती) में जब अधिकांश स्वस्थ रोमन नागरिकों को कार्थेजी युद्धों में संलग्न होना पड़ा तो भूस्वामियों ने युद्धबंदियों को कृषिकार्यों के लिए दासों के रूप में क्रय करना प्रारंभ किया। इन युद्धों के कारण रोम में दासता का अभूतपूर्व प्रसार हुआ। प्रकार का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उस समय डेलोस द्वीप के एक प्रमुख दासबाजार में एक दिन में 10,000 दासों का क्रयविक्रय साधारण बात थी। कहते हैं कि आगस्टस के समय में जब एक नागरिक की मृत्यु हुई तो अकेले उसके अधिकार में ही उस समय चार हजार दास थे। शीघ्र ही इतालवी ग्राम समुदायों में दासों का बहुमत हो गया। नगरों में भी दासों का घरेलू कार्यों के लिए रखा जाता था। रोमन नागरिकों के मनोंजनार्थ दास योद्धाओं-ग्लैडियेटर्स-को कवचहीन स्थिति में शस्त्रयुद्ध करना पड़ता था। इस युद्ध में मृत्यु हो जाना साधारण घटना थी।
जब रोमन साम्राज्य में बहुसंख्यक दासों पर होनेवाला दुस्सह अत्याचार पराकाष्ठा पर पहुँच गया तो इटली तथा सिसली के ग्रामीण क्षेत्रों में दासविद्रोहों का सिलसिला शु डिग्री हो गया। सबसे प्रबल दासविद्रोह ई.पू. 73 के करीब ग्लैडियेटर्स के वीर नेता स्पार्टाकस के नेतृत्व में हुआ। विद्रोही दाससेनाओं का आकार निरंतर बढ़ता गया और एक समय तो समस्त दक्षिणी इटली दासों के हाथ में चला गया था। रोमन साम्राज्य के अंतिम चरण में जब साम्राज्यप्रसार रुक गया तो नए दासों का प्राप्त होना बंद हो गया। फलत: रोमन दासों की स्थिति भी सुधरने लगी। दासता के स्थान पर अर्ध-दासता बढ़ने लगी। रोमन साम्राज्य तथा व्यवस्था की अस्थिरता एव पतन का एक प्रधान कारण दासप्रथा थी। बहुसंख्यक दासों का अपने शोषण और उत्पीड़न पर खड़ी व्यवस्था से कोई लगाव न होना स्वाभाविक था। ऐसी स्थिति में रोमन व्यवस्था की जड़ें सामाजिक दृष्टि से अधिक पुष्ट न हो सकीं।