रामपः (दरवाज स बाहर झाककर) अर मा, व आ भी गए । ... तम उमा को समझा दना, थोड़ा-सा गा दगी । रामपःह-ह-ह । आइए, आइए ! [बाब गोपाल साद बठत ह ।] ह ह !... मकान ढढ़न म कछ तकलीफ तो नही ई ? गो. सादः (खखारकर) नही । तागवाला जानता था । राा िमलता कस नही? रामपः ह-ह-ह ! (लड़क की तरफ मखाितब होकर) और किहए शकर बाब, िकतन िदनो की छिया ह? शकरः जी, कालज की तो छिया नही ह । ‘वीक एड’ म चला आया था । रामपः तो आपक कोस ख होन म तो अब साल भर रहा होगा? शकरः जी, यही कोई साल-दो साल । रामपः साल, दो साल? शकरः ह-ह-ह !... जी एकाध साल का ‘मािजन’ रखता । गो. सादः (अपनी आवाज और तरीका बदलत ए) अा तो साहब, िफर ‘िबजनस, की बातचीत हो जाए । रामपः (चौककर) िबजनस’?- (समझकर) ओह !... अा, अा। लिकन जरा नाा तो कर लीिजए । गो. सादः यह सब आप ा तकफ करत ह ! रामपः ह-ह-ह ! तकफ िकस बात का। यह तो मरी बड़ी तकदीर ह िक आप मर यहा तशरीफ लाए । (अदर जातह।) गो. सादः (अपन लड़क स) ो, ा आ ? शकरः कछ नही । गो. सादः झककर ो बठत हो ? ाह तय करन आए हो, कमर सीधी करक बठो । तार दो ठीक कहत ह िकशकर की ‘बकबोन’-[इतन म बाब राम प चाय की ‘ट’ लाकर मज पर रख दत ह।]
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