Hindi, asked by ishwar89415, 5 months ago

रामधारी सिंह दिनकरनेमिट्टी बोने वाली मार खेती
मे जातको फेवायोकता है​

Answers

Answered by HarshAditya098
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Answer:

इस साल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई इलाक़े सूखे की मार झेल रहे हैं. मगर दोनों राज्यों में रहने वाले बैगा और पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के माथे पर शिकन तक नहीं. ये आदिवासी सदियों से बेवर खेती करते रहे हैं.

बेवर खेती यानी ज़मीन जोते बिना उसमें 56 तरह के पारंपरिक बीजों के सहारे खेती. मौसम की मार से दूर इस खेती से हर हाल में इतनी तो उपज हो ही जाती है कि गुज़ारा चल जाए.

आधुनिक तरीक़े से की जाने वाली खेती में फ़सलें भले एक बार धोखा दे दें, पर बेवर खेती कभी भूखा नहीं रहने देती.

मध्यप्रदेश के डिंडौरी ज़िले के बैगाचक इलाक़े में नान्हूं रठूरिया से अगर आप बेवर खेती के बारे में पूछें, तो वह बिना रुके आपको ऐसे कई कारण बता सकते हैं, जिससे आप खेती के इस तरीक़े से सहमत हो जाएंगे.

नान्हूं रठुरिया बताते हैं, “हम खेत जोतते नहीं हैं. छोटी-बड़ी झाड़ियों को जलाया और फिर आग ठंडी होने पर वहीं ज़मीन पर कम से कम 16 अलग-अलग तरह के अनाज, दलहन और सब्जियों के बीज लगा दिए. इनमें वो बीज हैं, जो अधिक बारिश हुई तो भी उग जाएंगे और कम बारिश हुई तो भी फ़सल की गारंटी है. इस खेती में न खाद की ज़रूरत होती है और न महंगे कीटनाशकों की.”

Explanation:

Answered by govindbola007
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Answer:

अकेलेपन से जो लोग दुखी हैं,

वृत्तियाँ उनकी,

निश्चय ही, बहिर्मुखी हैं ।

सृष्टि से बाँधने वाला तार

उनका टूट गया है;

असली आनन्द का आधार

छूट गया है ।

उदगम से छूटी हुई नदियों में ज्वार कहाँ ?

जड़-कटे पौधौं में जीवन की धार कहाँ ?

तब भी, जड़-कटे पौधों के ही समान

रोते हैं ये उखड़े हुए लोग बेचारे;

जीना चाहते हैं भीड़-भभ्भड़ के सहारे ।

भीड़, मगर, टूटा हुआ तार

और तोड़ती है

कटे हुए पौधों की

जड़ नहीं जोड़ती है ।

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