रानी कैकेयी ने दशरथ के बारे में सुमंत्र से
क्या कहा ?
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रानी कैकेयी राजा दशरथ की सबसे प्रिय पत्नी थीं. राजा दशरथ कैकेयी के सौन्दर्य और साहस के कायल थे. कैकेयी सौन्दर्य की धनी होने के साथ – साथ युद्ध कौशल की भी धनी थी. वे राजा दशरथ के साथ युद्ध में भी उनका साथ देने जाती थी. एक बार देवराज इंद्र सम्बरासुर नामक राक्षस से युद्ध कर रहे थे किन्तु वह राक्षस बहुत ही बलशाली था. उसका सामना कोई भी देवता नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में वे राजा दशरथ के पास सहायता के लिए गए. तब राजा ने उन्हें सम्बरासुर से युद्ध करने के लिए आश्वाशन दिया और वे युद्ध के लिए जाने लगे, तभी रानी कैकेयी भी उनके साथ जाने के लिए इच्छा जताने लगी. राजा दशरथ भी रानी कैकेयी को अपने साथ युद्ध में ले गये. युद्ध की शुरूआत हो गई. युद्ध के दौरान एक बाण राजा दशरथ के सारथी को लग गया, जिससे राजा दशरथ थोड़े से डगमगा गए.
तब इनके रथ की कमान रानी कैकेयी ने सम्भाली. वे राजा दशरथ की सारथी बन गई. इसी के चलते उनके रथ का एक पहिया गढ्ढे में फंस गया. सम्बरासुर नामक राक्षस लगातार राजा दशरथ पर वार कर रहा था, जिससे राजा दशरथ बहुत अधिक घायल हो गए. यह देख रानी ने रथ में से उतर कर जल्दी से रथ के पहिये को गढ्ढे से बाहर निकाला और खुद ही युद्ध करने लगी. वह राक्षस भी उनके पराक्रम को देखकर भयभीत हो गया और वहाँ से भाग गया. इस तरह रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की. राजा दशरथ भी रानी कैकेयी से बहुत प्रभावित हुए उन्होंने रानी कैकेयी को अपने 2 मनचाहे वरदान मांगने को कहा. रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से कहा कि – “आपके प्राणों की रक्षा करना यह तो मेरा कर्तव्य है.” किन्तु राजा ने उन्हें फिर भी वरदान मांगने को कहा. रानी ने कहा कि –“अभी मुझे कुछ नहीं चाहिए इन 2 वरदानों की आवश्यकता भविष्य में जब कभी पड़ेगी तब मैं मांग लूँगी”. तब राजा दशरथ ने उन्हें भविष्य में 2 वरदान देने का वादा कर दिया.
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