Hindi, asked by karishma999989, 2 months ago

रानी के साथ लड़ने वाली उनकी सखियों के क्या थे? ​

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Answered by Anonymous
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एक अंग्रेज अफ़सर ने लक्ष्मीबाई के बारे में लिखा था, 'वो बहुत ही अद्भुत और बहादुर महिला थी. यह हमारी खुशकिस्मती थी कि उसके पास उसी के जैसे आदमी नहीं थे 15 मार्च 1854. गोधूलि बेला में झांसी का सफेद शाही हाथी घुड़सवार दस्तों के साथ राजमहल की तरफ बढ़ रहा था. आमतौर पर झांसी के शाही मेहमानों की अगवानी इसी तरह की जाती थी. लेकिन उस दिन हाथी के ऊपर लगे और लाल मखमल से सजे चांदी के हौद में जो शख्स सवार था वह न सिर्फ झांसी के राजघराने बल्कि पूरी रियासत की तकदीर बदल सकता था.

यह शख्स थे मशहूर ऑस्ट्रेलियन वकील लैंग जॉन जो रियासत की कर्ता-धर्ता और महाराज गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई के विशेष आग्रह पर आगरा से झांसी पहुंचे थे. उस जमाने में लैंग को हिंदुस्तान में कंपनी शासन की तानाशाही के खिलाफ मुखर पैरवी करने के लिए जाना जाता था. रानी चाहती थीं कि वे लंदन की अदालत में डॉक्टराइन ऑफ लैप्स (गोद निषेध कानून) के विरोध में झांसी का पक्ष रखें. इस नीति के तहत दत्तक पुत्रों को रियासतों का वारिस मानने से इनकार कर दिया गया था. पुरोहितों ने लक्ष्मीबाई को लैंग से मिलने के लिए सूर्यास्त के बाद और चंद्रोदय से पहले का समय सुझाया था. यह वही वक़्त था.

रास्ते में लैंग लगातार सोचे जा रहे थे कि किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी मित्र रियासत झांसी को हड़पने की साजिश कर रही थी. वहीं महल में इंतजार कर रही रानी के जेहन में गुजरे 12 साल खुद को दोहरा रहे थे. वे साल जो घुड़सवारी और तीरदांजी के खेलों में उलझी मासूम मनु को वक़्त से पहले ही दुविधा और जिम्मेदारियों से भरी इस दहलीज़ पर खींच लाए थे.

Answered by kanishka259
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