रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
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देले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी.... सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां आज भी न केवल महारानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा बयां करती हैं, बल्कि इनको पढ़ने-गुनगुनाने मात्र से मन में देशभक्ति का एक अद्भुत संचार हो उठता है. आजादी के महासंग्राम का स्वर्णिम अध्याय बनी झांसी की इस वीरांगना की शहादत को यह देश कभी नहीं भूल सकता. आज महारानी लक्ष्मीबाई शहीदी दिवस है. आज ही के दिन वर्ष 1857 में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गई थी.
अश्वारोहण और शस्त्र-संधान में निपुण महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी किले के अंदर ही महिला-सेना खड़ी कर ली थी, जिसका संचालन वह स्वयं मर्दानी पोशाक पहनकर करती थीं. उनके पति राजा गंगाधर राव यह सब देखकर प्रसन्न रहते. कुछ समय बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, पर कुछ ही महीने बाद बालक की मृत्यु हो गई. पुत्र वियोग के आघात से दु:खी राजा ने 21 नवंबर 1853 को प्राण त्याग दिए. झांसी शोक में डूब गई. अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के बल पर झांसी पर चढ़ाई कर दी.
झांसी की मुट्ठी भर सेना ने रानी को सलाह दी कि वह कालपी की ओर चली जाएं. अपने विश्वसनीय चार-पांच घुड़सवारों को लेकर रानी कालपी की ओर बढ़ीं. लेकिन कालपी में भी अंग्रेजों ने रानी का पीछा नहीं छोड़ा.
22 मई 1857 को क्रांतिकारियों को कालपी छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा. 17 जून को फिर युद्ध हुआ. रानी के भयंकर प्रहारों से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा. महारानी की विजय हुई, लेकिन 18 जून को ह्यूरोज स्वयं युद्धभूमि में आ डटा. लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख को सौंप दिया. सोनरेखा नाले को रानी का घोड़ा पार नहीं कर सका. वहीं एक सैनिक ने पीछे से रानी पर तलवार से ऐसा जोरदार प्रहार किया कि उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और आंख बाहर निकल आई. घायल होते हुए भी उन्होंने उस अंग्रेज सैनिक का काम तमाम कर दिया और फिर अपने प्राण त्याग दिए. 18 जून, 1857 को बाबा गंगादास की कुटिया में जहां इस वीर महारानी ने प्राणांत किया वहीं चिता बनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया.
लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं. ह्यूरोज जो उनके शत्रु से कम नहीं थे, ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि उन्होंने जितने भी विरोधियों का सामना किया उनमें सबसे अधिक खतरा उन्हें लक्ष्मी बाई से ही था. इस वीरांगना को यह देश हमेशा याद रखेगा.
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, झाँशी की रानी भारतीय इतिहास की जानी-मानी हस्ती हैं। 1857-58 के भारतीय विद्रोह के दौरान उनकी वीरता के लिए उन्हें याद किया जाता है। पेशवा (शासक) बाजी राव द्वितीय के परिवार में पली-बढ़ी, लक्ष्मी बाई का एक ब्राह्मण लड़की के लिए असामान्य पालन-पोषण हुआ।
पेशवा के दरबार में लड़कों के साथ पली-बढ़ी, उसे मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित किया गया और तलवार चलाने और घुड़सवारी में दक्ष हो गई। उसने झांसी के महाराजा गंगाधर राव से शादी की, लेकिन सिंहासन के जीवित उत्तराधिकारी के बिना विधवा हो गई। स्थापित हिंदू परंपरा का पालन करते हुए, अपनी मृत्यु से ठीक पहले महाराजा ने एक लड़के को अपने उत्तराधिकारी के रूप में गोद लिया था। भारत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने गोद लिए गए उत्तराधिकारी को मान्यता देने से इनकार कर दिया और चूक के सिद्धांत के अनुसार झांसी पर कब्जा कर लिया।
22 वर्षीय रानी ने झांसी को अंग्रेजों को सौंपने से इनकार कर दिया। लक्ष्मी बाई को झांसी की रीजेंट घोषित किया गया था, और उन्होंने नाबालिग उत्तराधिकारी की ओर से शासन किया था। इस तरह रानी लक्ष्मी बाई ने साबित कर दिया कि उनका नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा।
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