र्नुष्य तभी तक र्नुष्य है, जब तक वह प्रकृनत से ऊपर उठने के लिए सिंघषम करता रहता है। यह प्रकृनत
दो प्रकार की है - अिंतः और बाह्य । बाह्य प्रकृनत को अपने वश र्ें कर िेना बडी अच्छी और बडे गौरव
की बात है, पर अिंतः प्रकृनत पर ववजय पा िेना उससे भी अधधक गौरव की बात है। ग्रहों और तारों का
ननयर्न करने वािे ननयर्ों का ज्ञान प्राप्त कर िेना गौरवपूर्म है, पर र्ानव जानत की वासनाओिं,
भावनाओिं और इच्छाओिं का ननयर्न करने वािे ननयर्ों को जान िेना उससे अनिंत गुना अधधक गौरवपूर्म
है।
(क) उपयुमक्त अनुच्छेद का शीषमक लिखखए।
(ख) सिंदभम का एक नतहाई सार लिखखए।
(ग) र्ानव को गौरव प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहहए ?
(घ) वविोर् शलद लिखें : सिंघषम, इच्छा ।
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