रानी उद्यान की बाई ओर पहाड़ी की एक चट्टान पर वहाँ के वीरों ने देवताओं
की विशाल मूर्तियाँ बनवाई । चट्टान को काटकर मूर्तियों को दर्शाया गया है, वह
दृश्य अनुपम है । मंडोर गार्डन के दृश्यों से अभिभूत हम मेहरानगढ़ किले की ओर
बढ़ने लगे, जो शहर के मध्य में ४०० फीट ऊँची पहाड़ी पर २० फीट से १२० फीट
ऊंची दीवार के परकोटे से घिरा है। इसका निर्माण कार्य १४५९ में जोधा जी राव
द्वारा कराया गया था। उसके परकोटे में जगह-जगह बुर्जियाँ बनाई गई हैं। इस
किले में भव्य प्रवेश द्वार जयपोल, लोहपोल और फतहपोल बने हैं। जयपोल तक
आते-आते ही शहर नीचे रह जाता है और हम काफी ऊपर आ जाते हैं। दोपहर की
रेगिस्तानी धूप और शाम की चमकती चाँदनी में शहर का भव्य व मनोरम दृश्य यहाँ
से बड़ा ही मनभावन दिखाई देता है । ये प्रवेश द्वार जोधाजी राव के विभिन्न वंशजों
द्वारा विजय के प्रतीक रूप में बनवाए गए हैं । द्वारों की दीवारों पर जौहर करने
वाली वीरांगनाओं के हस्तचिह्न भी बने हैं । दुर्ग के अंदर कई भव्य और विशाल
भवन हैं, जैसे-मोतीमहल, फूलमहल, शीशमहल, दौलतखाना, फतहमहल और
रानी सागर आदि । कहीं बैठकखाना तो कहीं दीवानेखास; दीवानेआम हैं तो कहीं
कला की प्रदर्शनी हेतु पेंटिंग्स एवं दरियाँ भी प्रदर्शित की गई हैं। make 5 questions use this paragraph?
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