रूप भेद किसे कहते हैं विस्तार से वर्णन कीजिए
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संस्कृत में 'शब्द' या मूल रूप को ' प्रकृति' या 'प्रातिपदिक' कहा गया है और सम्बन्ध-स्थापन के लिए जोड़े जाने वाले तत्त्व को 'प्रत्यय'। महाभाष्यकार पतंजलि कहते हैं कि वाक्य में न तो केवल 'प्रकृति' का प्रयोग हो सकता है, न केवल प्रत्यय का। दोनों मिलकर प्रयुक्त होते हैं। (नापि केवला प्रकृति: प्रयोक्तव्या नापि केवल प्रत्ययः)। प्रकृति और प्रत्यय दोनों के मिलने से जो बनता है उसे ही ' पद ' या 'रूप' कहते हैं।[2] उदाहरण के लिए वृक्षात् पत्राणि पतन्ति। इस वाक्य में वृक्ष पत्र आदि शब्द के बजाय उसके प्रत्यय सहित रूप पद वृक्षात्, पत्राणि आदि का प्रयोग हुआ है। लेकिन सभी भाषाओं में शब्द और पद के रूप में इतनी भिन्नता नहीं होती है। वियोगात्मक भाषाओं में जहाँ संबंधतत्व दर्शाने के लिए परसर्गों का प्रयोग होता है वहाँ शब्द और पद के रूप में कभी-कभी भिन्नता होती है तो कभी नहीं भी। उदाहरण स्वरूप-
राम आम खाता है। इस वाक्य में प्रयुक्त पद एवं शब्द में भिन्नता नहीं है। संबंधतत्व ने और को भी गुप्त हैं।
पेड़ों की डालियाँ फलों से लदी हैं। इस वाक्य में पेड़, डाली, फल, लदना जैसे शब्द के पद के रूप में प्रयुक्त हुए परिवर्तित रूप को देखा जा सकता है।
चीनी भाषा में संबंधतत्व वाक्य में शब्द के स्थान से ही जाहिर हो जाते हैं। इसलिए उसमें शब्द और पद में भिन्नता नहीं होती है।
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जब शब्द वाक्य की आवश्यकता के अनुसार अपने रूप में वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे ' पद ' या ' रूप ' कहते हैं।
इनमें पहला स्तर 'रूप' का है। इसके बाद क्रमशः शब्द, पद, पदबंध, उपवाक्य, वाक्य, और प्रोक्ति आते हैं। 'रूप' की संकल्पनात्मक इकाई रूपिम है। रूप, रूपिम और इनसे जुड़ी इकाइयों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन रूपविज्ञान में किया जाता है, जिसका विवेचन प्रस्तुत इकाई में किया जा रहा है।
- जैसे मिट्टी, कपास आदि; पद बने हुए वे तत्त्व हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है, जैसे- ईंट, वस्त्रा आदि; वाक्य वह रूप है, जो वास्तविक रूप में प्रयोग में आता है, जैसे- मकान, सिले वस्त्रा आदि। पद ईंट है तो वाक्य मकान या भवन।
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