रूपक अलंकारांची व्याख्या व उदाहरण
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इस लेख में हमनें अलंकार के भेद रूपक अलंकार के बारे में चर्चा की है।
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रूपक अलंकार की परिभाषा
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। रूपक अलंकार में उपमान और उपमेय में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ता है। जैसे:
रूपक अलंकार के उदाहरण :
वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
ऊपर दिए गए उदाहरण में पैरों को ही कमल बता दिया गया है। ‘पैरों’ – उपमेय पर ‘कमल’ – उपमान का आरोप है। उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दिखाई जा रही है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
बीती विभावरी जागरी ! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घाट उषा नगरी।
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं यहां उषा में नागरी का, अम्बर में पनघट का और तारा में घाट का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ यौवन में प्रभात का वक्ष में सर का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहां हम देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण:
उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग। विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।।
उपर्युक्त पंक्तियों में उदयगिरी पर ‘मंच’ का, रघुवर पर ‘बाल-पतंग'(सूर्य) का, संतों पर ‘सरोज’ का एवं लोचनों पर भ्रंग(भोरों) का अभेद आरोप है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
शशि-मुख पर घूँघट डाले अंचल में दीप छिपाये।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा आप देख सकते हैं की मुख(उपमेय) पर शशि यानी चन्द्रमा(उपमान) का आरोप है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।
ऊपर दिए गए उदाहरण में मन(उपमेय) पर सागर(उपमान) का एवं मनसा यानी इच्छा(उपमेय) पर लहर(उपमान) का आरोप है। यहां उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं विषय(उपमेय) पर वारि(उपमान) एवं मन(उपमेय) पर मीन(उपमान) का आरोप है। यहां उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
ऊपर दी गयी पंक्तियों में खुले आकाश(उपमेय) पर अपलक नयन(उपमान) का आरोप है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात। स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं हृदय जलजात में हृदय(उपमेय) पर जलजात यानी कमल(उपमान) का अभेद आरोप किया गया है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
रूपक अलंकार के बारे यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो उसे आप नीचे कमेन्ट में लिख सकते हैं।
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Explanation:
रूपक अलंकार :
परिभाषा:
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
रूपक अलंकार का उदाहरण :
1) उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बालपतंग।
बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
स्पष्टीकरण-
प्रस्तुत दोहे में उदयगिरि पर मंच का, रघुवर पर बाल पतंग का, संतों पर सरोज का एवं लोचनओं पर भृगों का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।
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2) विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं,
होत कबहुँ पल एक।
स्पष्टीकरण-
इस काव्य पंकित में विषय पर वारि का और मन पर मीन का अभेद आरोप होने से यहां रूपक अलंकार है।
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