रूपक-शशि-मुख पर पूँघट डाले अंचल में दीप छिपाए।
यमक-काली घटा का घमंड घटा
7. पूछे गए अलंकार जिस विकल्प में हैं, उसे रेखांकित कीजिए।
1 अनुप्रास अलंकार
(क) मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
(ख) चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं, जल-थल में।
(ग) तू मोहन के उरबसी व उरबसी समान।
(घ) 'मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टीला'।
2.श्लेष अलंकार
(क) चरन धरत चिंता करत, चितवत चहुँ ओर।
सुबरन को ढूँढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर ।।
(ग) विज्ञान यान पर चढ़ी सभ्यता डूबने जाती है।
(ख) सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात ।।
(घ) यह देखिए, अरविंद-से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
3. उपमा अलंकार
(क) 'मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।'
(ग) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों
(ख) हाय ! फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी।
(घ) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
4.मानवीकरण अलंकार
(ख) आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
(क) नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।
अली कली ही सौं बँध्यौ, आगे कौन हवाल॥
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ।।
(ग) बीती विभावरी जाग री।
(घ) उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा॥
अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।
5. अतिशयोक्ति अलंकार
(क) हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग ॥
(ग) कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए॥
(ख) सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात ।
स्वयं ही मुझा गया तेरा हदय-जलजात ॥
(घ) चमचमात चंचल नयन, बिच बूंघट पट झीन।
मनहुँ सुरसरिता विमल, जल उछरत जुग मीन।
8. उचित मिलान कीजिए।
(क) यमक अलंकार
1. जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया।।
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डढतभबभयबबभररम। चछजबभमयफजड
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Sorry, main tumko galti se unfollow kar diya, bura maat mano
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