History, asked by amanchoudhary62786, 8 months ago


. रिपन के आंतरिक प्रशासन एवं सुधारों की समीक्षा कीजिए।



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Answered by shishir303
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लार्ड रिपन के आंतरिक प्रशासन एवं सुधारों की समीक्षा कीजिए।

लॉर्ड रिपन के आंतरिक प्रशासन एवं सुधारों की समीक्षा...

लॉर्ड रिपन 1880 ईस्वी में ब्रिटेन से भारत का वायसराय बन कर आया था और 184 ईस्वी तक अपने लॉर्ड रिपन ने अपन पद पर कार्य किया। अपने कार्यकाल की इस छोटी अवधि में ही उसने अनेक तरह की उदारवादी नीतियों को अपनाया, जिससे वह भारतीय जनमानस में लोकप्रिय हो गया था।

लॉर्ड रिपन की शासन नीति लॉर्ड रिपन से पूर्व के जो भी ब्रिटिश वायसराय थे, वे सब वायसराय ब्रिटिश सरकार के अनुसार ही कार्य करते थे, उन्हें भारतीयों के हितों की चिंता नहीं होती थी। लेकिन लॉर्ड रिपन ने भारतीय जनभावनाओं का पूरा सम्मान किया और उनके हितों के लिए अनेक कार्य किए। उसने ब्रिटिश सरकार के उदारवादी चेहरे गढ़ने के लिए उचित कदम उठाए।

लॉर्ड रिपन के सुधारवादी कार्य...

  • प्रथम कारखाना अधिनियम — लॉर्ड रिपन ने भारत के मिल मजदूरों की दशा सुधारने के लिए पहले कारखाना अधिनियम को पारित किया। यह अधिनियम 100 से अधिक श्रमिक वाले कारखानों पर लागू होता था और इस अधिनियम से इन कारखानों के मजदूरों को नियमित किया गया, जिससे उनकी दशा में सुधार आया।
  • बाल मजदूरी नियंत्रण — लार्ड रिपन ने बालमजदूरी भी अंकुश लगाया गया और 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को काम नहीं करने तथा 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सीमित समय निश्चित किए गए।
  • वर्नाकुलर अधिनियम को रद्द करना — लॉर्ड रिपन ने भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों को अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्रों के समान ही स्वतंत्रता दी और वर्नाकुलम अधिनियम को रद्द कर दिया।
  • स्थानीय स्वशासन — लॉर्ड रिपन ने  स्थानीय प्रशासन को प्रोत्साहन दिया, जिसमें देश में नगर पालिका परिषद और स्थानीय निकायों की स्थापना की गई तथा स्थानीय स्वशासन को बढ़ाने लिये अनेक अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाये गये।
  • शिक्षा संबंधी सुधार — लॉर्ड रिपन ने भारतीयों की उत्थान के लिए शिक्षा संबंधी कई सुधार किये। उसने विलियम हंटर के नेतृत्व में एक आयोग गठित किया जिसने अनेक सिफारिशें कीं।

इसके अतिरिक्त नागरिक सेवा में सुधार किये,  भारत की पहली जनगणना करवाई, आर्थिक विकेन्द्रीकरण की नीति जारी रखी और कई अन्य महत्वपूर्ण सुधार किये।

मूल्यांकन — लॉर्ड रिपन अपने सुधारवादी कार्यों के कारण उस समय भारतीय जनमानस में बहुत लोकप्रिय हो गया था और अक्सर उसे सज्जन लॉर्ड रिपन के नाम से भी पुकारा जाता था।

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