Hindi, asked by rajmhatre18, 1 year ago


रूपये की आत्मकथा निबंध

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Answered by shanaya210
7

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Answered by navneetchhabra35
4

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प्रस्तावना-मैं एक रूपया हूँ। मुझ से सभी लोग प्यार करते हैं। मुझे पाने के लिए लोग सब कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं। मेरा आकर्षण ही कुछ ऐसा है। मेरा इतना अधिक महत्व है कि मेरे आते ही लोगों का जीवन बदल जाता है। मेरा महत्व तो बहुत अधिक है, पर मेरा जीवन कैसा है, यह भी जानने की कोशिश क्या तुम ने कभी की है? आइए, आज मैं आप को अपनी कहानी सुनाता हूँ। सुनिए ध्यान से।

मेरा जन्म- मेरा जन्म धरती माता के गर्भ से हुआ है। मैं वर्षों तक धरती माता के गर्भ में विश्राम करता रहा हूँ। उस समय मेरा रूप आज के रूप से बिल्कुल भिन्न था। मेरा बहुत बड़ा परिवार था। हम सब एक ही रूप में मिल जुलकर रहते थे।

जीवन में परिवर्तन- मेरे जीवन मे परिवर्तन तब आया जब एक दिन कुछ लोगों ने खान की खुदाई शुरू की। उनके खुदाई शुरू करते ही मेरा दिल काँपने लगा। मैं सोच में पड़ गया। बड़ी बड़ी मशीनों से हमें खोदा जाने लगा। गाडि़यों में लाद कर हमें एक बहुत बड़े भवन में लाया गया। यहाँ रसायन डालकर हमें साफ किया गया। इससे हमें कष्ट तो बहुत हुआ, पर यह सब चुपचाप सहन कर लिया। सोना तप कर ही तो निखरता है। इसी प्रकार कष्ट सहने के बाद ही तो सुख मिलेगा, यह सोचकर हम चुप हो गए।

टकसाल- इसके बाद हमें टकसाल भेज दिया गया। वहाँ हमें मिटृी में डालकर पिघलाया गया और उसके बाद हमें साँचों में ढाला गया। हमारा नाम भी रख दिया गया-रूपया। यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मेरे रूप में भी अब निखार आ गया। यह रूप पाकर मैं अपने भाग्य पर इतराने लगा।

भाग्य की विडम्बना- कई दिन तक मैं अपने साथियों के साथ टकासल में ही पड़ा रहा। इसके बाद हम सबको इकट्ठा करके थैलों में बंद कर दिया। थैलों के मुख को अच्छी तरह बांध दिया गया और उनपर मोहर लगा दी। अब हम थैलों में कैद थे। सांस लेना और अपने शरीर को हिलाना तक मुश्किल हो रहा था। मैं दुबक कर रह गया। अपने भाग्य को कोसने के सिवाए और कोई चारा न रहा।

बैंक में जमा- हम से भरे थैलों को सुरक्षापूर्वक स्टेट बैंक में लाया गया। यहाँ उन थैलों को बड़े और मजबूत कमरे में बंद कर दिया। यह तो ऐसा स्थान था जहाँ न सूर्य की किरण पहुँचती थी और न ही सांस लेने के लिए ताजी हवा। दिल मसोस कर रह गया और कर भी क्या सकता था।

भाग्य बदला-कई महीनों तक काल कोठरी में पड़े रहने से मैं निराश हो गया। मैंने सोचा कि इससे तो मृत्यु ही भली। पर सभी दिन एक समान नहीं रहते। घूरे के भी दिन बदलते हैं। मेरे भी भाग्य ने पलटा खाया। मैं जिस थैले में बंद था, उसे खोला गया और बैंक के खजांची को दे दिया। बैंक के खजांची ने मुझे और मेरे साथियों को एक व्यापारी को दे दिया। मैंने सुख की सांस ली। सोचा अब अच्छे दिन आ गए।

किस्मत फूटी- मेरी तो किस्मत ही फूट गई। व्यापारी भी बहुत कंजूस था। उसने बैंक से थैलों को लाकर अपनी तिजारेी में बंद कर दिया। वहाँ भी मेरी हालत में सुधान नहीं हुआ। मन मारकर रह गया। एक दिन सेठ के घर डाकुओं ने डाका डाला और थैलों को उठाकर ले गए।

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