रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
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Answer:
रे पुनः धोरते टीवीया दत्तं मह्यम् विग्रहार्थत्रं पुरः।
यासी वधुना जैसी विश्वासयोग्य कहानी।
इत्युकत्वं धवितं तरणं व्याघ्रमरी भयंकरं।
व्याघ्रो घ पि सहसा नष्ट: गलितशृगालक:⁇
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
संदर्भ : ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इस पाठ के गद्यांश की इन पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार है।
अर्थ : व्याघ्र सियार से बोला, अरे धूर्त, तूने मुझे पहले तीन बाघ लाने का वचन दिया था। फिर भी तू एक ही बाघ लेकर क्यों आया? ऐसा कहकर भय को उत्पन्न करने वाली आवाज से साथ वह व्याघ्र दौड़ पड़ा। ये देखकर व्याघ्र भी गले में बंधे सियार को लेकर भागने लगा। इस बुद्धिमती बाघ के भय से मुक्त हो गयी। इसीलिये कहते हैं कि बुद्धि ही सबसे बलवान होती है।