रे।
संतौं भाई आई
ग्याँन की आँधी
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नों छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीना।। in short
Answers
Answer:
I know answer is long but...... you can make it short
कबीर दास जी ने इस पद में हमें यह शिक्षा दी है कि सांसारिक मोहमाया, स्वार्थ, धनलिप्सा, तृष्णा, कुबुद्धि इत्यादि बुराइयाँ मनुष्य में तभी तक मौजूद रहती हैं, जब तक उसे आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता। जैसे ही मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसके अंदर स्थित सारी सांसारिक बुराइयों और वासनाओं का अंत हो जाता है।
यहाँ कवि कहते हैं कि जब ज्ञान की आंधी आती है, तो सांसारिक भ्रम रूपी बांस की टट्टरों (छप्परों) को माया रूपी रस्सियाँ बाँध कर नहीं रख पातीं और वो ज्ञान की आंधी में तिनके की तरह उड़ जाती हैं।
सांसारिक भ्रम की छत को सहारा देने वाले स्वार्थ और लालच रूपी खम्बे भी ज्ञान की आँधी में गिर जाते हैं। इसी तरह सच्चा ज्ञान, मोह रूपी सांसारिक बंधन का भी नाश कर देता है। एक-एक करके सभी सहारे हट जाने की वजह से तृष्णा-रूपी छत भी धरती पर आकर गिर गयी है और इसकी वजह से कुबुद्धि रूपी सब बर्तन भी टूट गए हैं।
इसके बाद साधु-संतो ने अपनी योग-साधना की कड़ी मेहनत से एक बहुत ही मजबूत छत का निर्माण किया है, जिसमें से अज्ञान और सांसारिक मोह-माया रूपी पानी की एक बून्द भी नहीं टपकती है। इस घर में मनुष्य के भटकने के लिए कोई राह नहीं है, यहां केवल आध्यात्म और प्रभु की भक्ति की ही एकमात्र राह है।
आगे कवि कहते हैं, ज्ञान की इस आंधी के बाद ईश्वर के प्रेम का मधुर जल हर मनुष्य को भिगो देता है और उनके मन के सारे मैल धुल जाते हैं। फिर जब ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है, तो हमारे अंदर स्थित सारे अज्ञान के अन्धकार का अंत हो जाता है।
Explanation:
-from ABHI